विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Wednesday, October 29, 2008

क्या होगा कोई नही जानता

सोच रहा था की ऐसी दिवाली फुर कभी न आए, एक तरफ़ तौ इन्वेस्टर्स का दिवाला निकल रहा था तो दूसरी और मार्केट में गराहक की कोई भीड़ देखने को नही मिल रही थी, ऐसे में कोई भी हताश हो सकता है। वैसे कारोबार में अच्छा रुख देखकर निवेशको को कुछ रहात ज़रूर मिली। मेरी तो अल्लाह से यही दुआ है की आगे सब कुछ ठीक रहे.

Monday, October 27, 2008

मुंबई में हाल ही में पुलिस द्वारा किया एनकाउंटर एक बार फ़िर से सुर्खियों में है, एक युवक ने बस हिजैक की तौ उसे इसकी सज़ा मौत के रूप में मिली। सवाल ये है की बुरे हालत में जबकि युवक ने कोई भी नुक्सान नही किया था। पुलिस एक बार फ़िर से घिरी नज़र आ आ रही है। क्या उत्तर भारतीय और महाराष्ट्र का मुद्दा देश को बांटने का काम नही कर रहा हैं ? लेकिन हालत ऐसे हो गए हैं की उत्तर भारतियों को तौ आदर स्टेट में नौकरी भी करनी मिश्किल हो गई है। कोण सन्हालेगा इस गाँधी के देश को?

Sunday, October 12, 2008

आंतकवाद के लिए कौन जिम्मेदार?


देहरादून। हाल ही में देलही में हुवे बम धमाको का सच सामने आने से पहले ही देलही पुलिस ने एक काम को अंजाम दिया। लेकिन इस एनकाउंटर के पीछे भी एक झोल नज़र आ रहा है। वह है इंसपेक्टर की मौत पर सवालिया निशाँ। कहा जा रहा है की इंसपेक्टर की मौत आंतकवादियों की गोली से नही बल्कि किसी और वजह से हुई है। अब यह वजह क्या है,कोई नहीं जानता। लेकिन इतना ज़रूर हो गया है की कही न कही इसके लिए हम ही जिम्मेदार है। या फ़िर हमारा सुरक्षा तंत्र.

Tuesday, April 1, 2008

महंगाई की मार से जनता बेहाल


बढ़ती महंगाई के लिए किसे जिम्मेदार बताये ?सरकार को या जनता को या फ़िर खेत मी पसीना बहने वाले किसान को?दिनों-दिन भद रही महंगाई से आम आदमी के माथे पर लकीरे खींच दी तौ सरकार भी बेचैन नज़र आ रही हैइस पर विचार करना ज़रूरी हैमहंगाई की डर पर सरकार लगाम लगाने में कामयाब नही हो पा रही हैसरकार ने आज दालो के आयात पर जो पाबन्दी लगाई है स्वागत योग्य हैपरन्तु हमे ज़रूरी है की हम उन किसानों के लिए भी कुछ करे जो रात-दिन एक करके पसीने से सींचकर फसल उगते हैउन्हें जब सब्सिडी नही दी जायेगी तौ वो कहा तक अपना और जनता का पेट पल सकते है?बजट में किसानों का क़र्ज़ माफ़ करके क्या एहसान किया है?सरकार को चाहिए की उनको जेरो दरो पर पैसा उपलब्ध कराये साथ-साथ उन्हें मेडिकल जैसी सुविधाये भी दी जनि चाहिएइससे न केवल किसानों की तरक्की होगी बल्कि समाज जिस समस्या से झूज रहा है,उसका भी निदान होगा

Saturday, March 29, 2008

बिहार में पाप


बिहार में हुई घटना को समाज की नीचता कहे या अराजकता आए दिन इस प्रकार की घटनाये वहाँ आम बात हो गई हैजनता कानून अपने हाथ में लेने में ज़रा भी हिचकिचाती नही हैसवाल इस बात को लेकर है की इस प्रकार की बातो से शाशन क्या रूख अपनाता है? पिछले दिनों इस प्रकार की अनेक घटनाये देखने को मिली कुछ लोगो ने चोरो को मार मार कर मौत के घाट सुला दियाएक बच्चे की चोरी का इल्जाम देकर पिटाई की गई तीन लोगों की चोरी के जुर्म में आँखे निकल ली गईइस तरह की न जाने कितनी घटनाये है जो निरंतर जनता का कानून से विश्वास घटा रही हैजाने कितनी महिलाओं को भूत बता कर मार दिया जाता हैकोण रोकेगा इस अराजकता को? ज़रूरी है की इसके ख़िलाफ़ प्रशासन को कठिन कदम उठाने होंगे लोगो में कानून के प्रति जागरूकता लानी होगी