विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Friday, April 13, 2012

बाबा का क्या कसूर???

निर्मल बाबा, इन दिनों सबके दिलो दिमाग में पर छाए हुए हैं। कल तक उनके प्रशंसक उनका गुणगान करने वाले आज उनके आलोचकों की फेहरिस्त में आ गए हैं। कई जगहों पर निर्मल बाबा के खिलाफ मुकदमेबाजी का दौर भी चल पड़ा है। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर भी बाबा अब गुस्सैल यूजर्स के निशाने पर हैं। कल तक सबकुछ बेहतर लगने वाला आज अचानक कैसे बदल गया। कल तक जनता के दुखों का निवारण करने वाले बाबा अब खुद ही धर्मसंकट में फंस गए हैं। न्यूज चैनलों ने भले ही खबरों को दबाने का प्रयास किया हो लेकिन कहीं न कहीं बाबा की मुखालफत सामने आ ही रही है। बाबा....बाबा...आखिर कौन हैं निर्मल बाबा? कैसे मिला उन्हें यह चमत्कारी गुण और कैसे कर देते हैं वह जनता के दुखों का निवारण। ऐसे तमाम सवालों के बीच अगर निर्मल बाबा का दूसरा पक्ष देखा जाए तो कई नए एंगल नजर आते हैं। आखिर कभी हमने यह सोचने की जरूरत नहीं समझी कि निर्मल बाबा का उदय क्यों हुआ? इतने कम समय में वह हमारे घर-द्वार तक कैसे पहुंचे गए...

दरअसल निर्मल बाबा भी एक आम इंसान की तरह जिंदगी जीते थे। वह भी दुख और कर्ज का सामना कर चुके हैं। उन्हें भी कारोबार में घाटा उठाना पड़ा था लेकिन उन्होंने कभी किसी बाबा की शरण नहीं ली। क्योंकि वह जानते थे कि दुनिया का कोई भी शख्स उनके दुखों का निवारण नहीं कर सकता। अगर वह किसी बाबा के पास चले गए होते तो आज निर्मल बाबा ही न होते। खैर, निर्मल बाबा ने एक बात तो जान ही ली थी कि भारत की जनता कितनी अंध विश्वासी है। अगर माइंड गेम खेलकर उनके दिलो दिमाग पर क्लिक किया जाए तो वह भी कल के मशहूर बाबा बन सकते हैं। एक टीवी कलाकार ने इन दिनों बाबा के खिलाफ कंप्लेन की है, यह बताते हुए कि बाबा ने अपने शुरुआती दौर में हमें प्रतिदिन का मेहनताना देकर सभा में सवाल पूछने के लिए बुक किया था। बाद में बाबा की दुकान चलने लगी तो उन्होंने धोखा देना शुरू कर दिया। आज बाबा कहां हैं और वह टीवी कलाकार वहीं की वहीं है। दरअसल, बाबा की दुकानदारी चलाने वाले भी तो हम खुद ही हैं। आखिर हम क्यों भगवान को छोड़कर इस प्रकार के आम इंसान की भगवानी बातों के भंवर में फंस जाते हैं।

बाबा ने जो किया है, मेरे ख्याल से वह सही है, गलत हैं तो केवल हम। अगर हम बाबा को भगवान को दर्जा ही न देते तो बाबा अपने इस काम में सफल ही न होते। अपने दुखों को बाबा के सामने माइक पर गाकर कहीं, हम उस सृष्टि, अन्नदाता, भगवान और ईश्वर को चैलेंज तो नहीं कर रहे हैं। अगर हां, तो इसका खामियाजा भी हमें निर्मल बाबा जैसे लोगों के रूप में भुगतना तो पड़ेगा ही। मेरा मानना है कि ईश्वर एक है, उसी ने पूरी दुनिया बनाई है, हर धर्म का रास्ता कहीं न कहीं जाकर उसी एक ताकत से मिलता है। फिर हम कब अपने अंदर सुधार लाएंगे। कब ऐसे बाबाओं को पनपने से रोकने का प्रयास करेंगे। केवल कुर्सी पर बैठकर और घर की आलमारी में 10 रुपए के नोटों की गड्डी रखकर ही कोई अमीर नहीं बन जाता। अमीर बनने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती है। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है, तो भला इस शॉर्टकट की तलाश में कहीं हम भी तो बाबा के रास्ते नहीं चल रहे?