विचार कभी सामान्य नहीं होते
विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....
आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत
Monday, January 26, 2009
ये कैसा शोर?
हर बार हम बड़े शोक के साथ २६ जनवरी मानते हैं। हम बार-बार पुलिस पर दोष मढ़ते है की वह घूस लेती है, नगर निगम पर आरोप लगते हैं की वह सफाई नही करता, अफसरों पर लापरवाही का आरोप लगते हैं, चारो और असंतोष ही अशंतोश झलकता दिखाई देता है। लेकिन क्या कभी आपने ये भी सोचा है की अगर हम अपनी ज़िम्मेदारी समझे तौ पुरा देश सुधर जाएगा। आओ इस २६ जनवरी पर हम सब मिलकर ये कसम खाएं की हम सुधरेंगे तौ देश सुधरेगा.
Friday, January 16, 2009
उल्टा कर दिया सबकुछ
Thursday, January 8, 2009
क्या यह इसका हल है?

मेरी समझ में ये नही आता की क्या हड़ताल ही हर बात का हल है? इसके बजायअगर गांधीगिरी का रास्ता अपनाया जाए तौ कम से कम आम लोगो को तौ परेशान होने से बचाया जा सकता है। पहले ट्रक उसके बाद पेट्रोल ओफ्फिसर्स का स्ट्राइक पर जन क्या संकेत देता है? क्या ऐसा तPOST http://www.blogger.com/post-edit.do HTTP/1.0ौ नही है की पॉवर आम जनता के हाथ में आ रही है। कही ऐसा तौ नही है की सरकार कुछ सख्त कदम उतने में हिचकिचा रही है। अगर सरकार की येही ढिलाई रही तौ एक दिन पुरी इकोनोमी हिल कर रह जायेगी। कुछ करो मनमोहन जी.
Tuesday, January 6, 2009
कब तक ?

कब तक सच को झुत्लाता रहेगा? एक दिन तौ बात माननी ही पड़ेगी। आख़िर कब तक? आख़िर कब तक हम अपने ही घर में जुर्म सहते रहेंगे? कोण होगा इसका जिम्मेदार? बार-बार येही सवाल उठता है की कब तक एक माँ को अपना लाडला खोते रहना होगा? कब तक एक बहिन को अपना भाई खोना होगा, कब तक एक पत्नी को अपना पति खोना होगा, कब तक एक बच्चे को अपना सहारा खोना होगा? कब खुलेंगी पकिस्तान की आंखे?
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