विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Thursday, January 27, 2011

हमारी एकता दुनिया के लिए मिसाल है

एक देश, 28 राज्य, 1618 भाषाएं, 6400 जातियां, 6 धर्म, 6 एथनिक ग्रुप और 29 मेजर फेस्टिवल्स। यह है उस हिंदुस्तान की पहचान, जिसमें दीवाली में अली और रमजान में राम बसते हैं। 62वें गणतंत्र दिवस पर हम हमारी एकता को दिल से सम्मान और सलाम करते हैं। इन 62 सालों में न जाने कितनी बार हमें तोडऩे के प्रयास विफल हुए, न जाने कितने लोगों ने हमारी देशभक्ति को तोडऩे का असफल प्रयास किया होगा। बावजूद इसके हम एक थे और हमेशा एक रहेंगे. हमारी एकता और अखंडता की मिसाल आज दुनियाभर में लोगों के सामने है। ऐसी ही एकता की एक मिसाल हम आपके सामने भी रख रहे हैं।
बेहद छोटी मगर मोटी बात है…।


टेंपल, चर्च और मॉस्क्यू…तीनों ही वर्ड छह एल्फाबेट से मिलकर बने हैं, यानी तीनों शब्दों में एकता का सार आता है। इसी प्रकार गीता, कुरान और बाइबिल…तीनों ही शब्द पांच एल्फाबेट से मिलकर बने हैं, यानीं यहां भी हमारी एकता का सार आता है। हमारी एकता को अगर मिसाल कहें तो कोई दोराय नहीं होगी लेकिन इस मिसाल को एक शायर ने कुछ इस अंदाज में बल दिया है…
कहीं मंदिर बना बैठे, कहीं मस्जिद बना बैठे
तुमसे तो अच्छी है उन परिंदों की जात
जो
कभी मंदिर पे जा बैठे और कभी मस्जिद पे जा बैठे।।

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने देश की एकता के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। उनका एकता का दीवानापन ही अंत में उनकी जान का दुश्मन बन बैठा। अब सवाल यह उठता है कि धर्म अलग-अलग होने से क्या फर्क पड़ता है? हमारी रगो में बहने वाला खून और हमारी सांसों में जाने वाली ऑक्सीजन, कहीं से भी धर्म का फर्क नहीं करती है। हमारे पेट में जाने वाला अन्न और हमारे शरीर में जाने वाला पानी, कहीं से भी अलग नहीं होता। हमारे घर में पैदा होने वाला बच्चा और हमारी जीवन के अंत का सार स्वर्ग और नरक, कहीं से भी जुदा नहीं है। हमें इन बातों पर गर्व करना चाहिए और देश की एकता और अखंडता के लिए अपनी ओर से बेहतर प्रयास करने चाहिएं।

…जय हिंद, जय भारत


Wednesday, January 19, 2011

तुम मेरे साथ हो, रोशन है आंगन मेरे दिल का...

तुम मेरे साथ हो रोशन है आंगन मेरे दिल का
तुम न होती तो रोशनी कहां से लाता

कह देते एक बार भी मुझे
चांद-तारे मैं तोड़ लाता
हवाओं का रुख मैं मोड़ लाता
तुम मेरे साथ हो रोशन है आंगन मेरे दिल का।।

मोहब्बत का दर्द समझ जाता मैं
गर प्यार की भाषा में कह पाता
शब्दों को जोडऩा न सीख पाता मैं
इश्क की महकार से गुलजार गर न होता
तुम मेरे साथ हो रोशन है आंगन मेरे दिल का।।

बेशक इश्क की राहों का अंजान था मैं
तुम आसरा न देती तो भटक जाता
तूफानों से सामना न हुआ था कभी
तुम न होती तो भंवर में डूब जाता
तुम मेरे साथ हो रोशन है आंगन मेरे दिल का
तुम न होती तो रोशनी कहां से लाता।।

--फॉर माई लविंग वाइफ

Sunday, January 16, 2011

कितना बदल गया इंसान

100 का नोट बहुत ज्यादा लगता है, जब किसी गरीब को देना हो लेकिन होटल में तो बहुत कम लगता है…तीन मिनट भगवान को याद करना मुश्किल है लेकिन तीन घंटे की फिल्म देखना आसान है…पूरे दिन मेहनत के बाद दोस्तों के पास मस्ती करने से नहीं थकते लेकिन जब मां-बाप के पैर दबाने हों तो लोग तंग आ जाते हैं…वैलेंटाइन डे पर 200 रुपए का गिफ्ट अपनी प्रेमिका के लिए ले जाएंगे लेकिन मदर्स डे पर एक गुलाब अपनी मां को नहीं देंगे…यह है उस बदलते हुए इंसान की हकीकत जो हम सबके सामने है, जो हम सब हैं और जो हम सब कर रहे हैं। हम घर से बाहर जाते हैं तो फेसबुक पर अपना स्टेटस अपडेट करके पूरी दुनिया में ढिढ़ोरा पीट देंगे लेकिन अगर मां-बाप पूछ लेंगे तो जैसे आंखों में खून उतर आता है। हम आज जवान हैं तो दुनिया का हर पल और हर लम्हा हमारे साथ है लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि कल हमें भी बूढ़ा होना हैं। अगर हम आज अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं करेंगे तो कल हमारे साथ भी वही होगा जो हम करेंगे। यह बदलाव बेहद खतरनाक है, जिसमें रिश्तों की मर्यादाएं तो टूट ही रही हैं, हमारा भरोसा भी बिखर रहा है। एक नजीर आपकी पेशे नजर है।
एक दिन फुरसत के लम्हों में मैं अकेला ही एक पार्क में जाकर बैठ गया। सर्दी में अगर धूप की झलक भी बदन को मिल जाए तो जैसे एक अलग ही ऊर्जा का संचार होता है। उस दिन भी मैं ऐसी ही ऊर्जा का आनंद ले रहा था कि मेरे पीछे वाली एक सीट पर दो लड़कियां आकर बैठी। देखने में सभ्य से परिवार की दिख रही यह कन्याएं खासी मित्र प्रतीत हो रही थी। सीट पर बैठने के साथ ही इनकी बातें शुरू हुई, लग रहा था जैसे काफी दिनों की बाद एक-दूसरे से मुलाकात हुई हो। मैं गुनगुनी धूप में अलसाया सा प्रकृति का पूरे आनंद में लीन था लेकिन एक बात ने मुझे नींद से उठाकर खड़ा कर दिया। इनमें से एक लड़की ने दूसरी से कहा कि, वह तेजी से मोटी हो रही है, पेट भी तेजी से फैटी हो रहा है। इस पर सामने वाली लड़की को जो जवाब मिला, उससे मैं भी भौचक्का रह गया। उसने तुरंत सलाह दे दी कि, यार एक ब्रेकअप कर ले, एक महीने के अंदर ही पूरा मोटापा खत्म हो जाएगा। मैं नहीं जानता कि वह उनकी नादानी थी या फिर जानबूझकर की जाने वाली बेवकूफी भरी बात। बस इस बात ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया, कि रिश्ते और प्यार की अब बस इतनी कद्र रह गई है। हमें अगर मोटापा भी कम करना है तो हमें ब्रेकअप का सहारा लेना होगा। मैं धिक्कारता हंू ऐसी शिक्षा को जो हमारी नई पीढिय़ों को ऐसे संस्कार दे रही है, जहां रिश्तों की कोई मर्यादाएं ही नहीं हैं। इंसान बदल रहा है…इस पर मुझे आज वो एक भक्ति गीत याद आ रहा है…
देख तेरे संसार की हालत, क्या हो गई भगवान
कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान…