विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Saturday, November 27, 2010

यह गरीबी आपको रुला देगी

हमारे नेता घोटाले कर विदेशी बैंकों में काला धन जमा कर रहे हैं। उद्योगपति विदेशी कंपनियों को खरीदने के साथ ही इतने आलीशान बंगले बना रहे हैं, जिनका बिजली का बिल भी एक महीने में 60 लाख रुपए तक पहुंचता है। दुनिया के सामने देश की एक अलग तस्वीर पेश की जा रही है। वह तस्वीर जिसमें सबकुछ चकाचौंध भरा है, जिसकी चमक इतनी है कि भारत की गरीबी कहीं गुम सी हो गई है। सरकारें लाख दावे कर रही है लेकिन नतीजा आज भी हमारे सामने है। इन दावों के गुबार से निकलने वाला धुंआ कहीं न कहीं घोटाले की बू लेकर आता है। वोट देने वाली जनता आज भी दो जून की रोटी के लिए तरसती है तो काहे का यंग इंडिया, काहे का पावरफुल इंडिया? आज जो मैंने देखा, अगर आप भी उसे महसूस करेंगे तो रो पड़ेंगे और कोसेंगे उन मुखियाओं को जिनके कंधों पर देश चलाने की जिम्मेदारी है, उस सिस्टम को जिसमें करप्शन अंदर तक इतना गहरा चुका है कि इससे बचने की कोशिश करने वाला भी इसमें डूबने से नहीं बच पाता।

कई दिनों से एक घर से एक खबर आ रही थी। खबर थी कि एक लड़की को घर चलाने के लिए ऑटो रिक्शा चलाने से लोगों ने मना कर दिया। इस पक्षपात भरी खबर को निष्पक्ष अंजाम तक पहुंचाने के लिए मैं उस घर में पहुंच गया। वहां जाने के रास्ते में मेरा स्वागत बदबू से हुआ तो भी आदत के मुताबिक मैं ज्यादा अनकंफर्ट नहीं हुआ। घर में एक जवान बेटी और एक बूढ़ी मां, बेटी के हाथ पीले करने की आस में हर पल दरवाजा ताकती दिखाई देती है। मैं अंदर पहुंचा तो शर्म और लज्जा का लबादा ओढ़े वह बेटी एक टूटे से कमरे में जाकर बैठ जाती है। मैं माताजी को नमस्ते करके वहां बैठ जाता हंू और पूरी बात पता करने की कोशिश करता हंू। माता जी मुझे अपना भगवान मानकर चाय पिलाने का आमंत्रण देती है लेकिन मैं अस्वीकार कर देता हंू।
मैंने परेशानी पूछनी शुरू की तो उन्होंने जो बताया, वह हमारे आज के इस सिस्टम, इस राजनीति और विकसित देश की बातें करने वाले विद्वानों के मुंह पर एक तमाचा है। बूढ़ी औरत ने बताया कि उसका एक बेटा है जो कि हाथ जलने के कारण मजदूरी से भी मजबूर हो चुका है। एक जवान बेटी है जो कि पहले रिक्शा चलाकर कुछ पैसे कमाती थी लेकिन अब जवान हो गई है तो समाज की तीखी निगाहों की वजह से यह भी बंद करना पड़ा। घर में एक किलो आटा तक नहीं है। घर पूरी तरह से जर्जर हो चुका है, इतना बेकार कि अब इसमें रात को लेटते समय सुबह को जिंदा बचने की कोई उम्मीद नहीं की जाती। आंसुओं को पोंछती हुई बताती है कि रात जब घर में आटा नहीं था और पैसे भी नहीं थे तो उन्होंने दस रुपए के सिंघाडे लेकर पेट भरा। राजधानी देहरादून में अगर वैध कालोनी में ऐसा घर आज भी बचा हुआ है तो यह हमारी नाकामी है। नाकामी है उन नेताओं की जो कि वोट मांगते समय बड़ी बड़ी बातें करते हैं, नाकामी है उस सिस्टम की, जिसमें करप्शन आज धर्म सा बन गया है। इसके बाद उस बूढ़ी औरत ने जितनी भी बातें बताई तो मैं अंदर से रो उठा। इस घर में कई दिनों से कई मीडिया वाले आ रहे हैं, फोटो अपने अलग-अलग एंगल से खींच रहे हैं, वीडियो बना रहे हैं लेकिन सहायता के नाम पर आज भी मिला है तो वह मजाक जो समाज ने बनाकर रख दिया है। हम, हमारा मीडिया वहां खबर तलाश रहा है लेकिन वह मुझसे हाथ जोड़कर रोते हुए कहती है कि अगर हमारी यह दशा अखबार या टीवी चैनल पर लोग देखेंगे तो मेरी बेटी का रिश्ता कैसे होगा? हमारी इज्जत तो खिलवाड़ बनकर रह जाएगी। मैंने उन्हें दिलासा देते हुए वैसे ही कुछ हेल्प करने की बात कहते हुए वहां से विदाई ली और मैं पूरे रास्ते अपने देश के महान नेताओं को कोसता हुआ आगे बढ़ गया।

Monday, November 22, 2010

कैसे खत्म होगा भ्रष्टाचार?

हम आए दिन किसी न किसी भ्रष्टाचार के खुलासे की खबरें अखबारों और टीवी चैनलों में देखते आए हैं। आज एक मंत्री ने घूस ली तो कल एक अधिकारी सुविधा शुल्क मांग रहा है। हम जानते हुए भी इसका शिकार हो रहे हैं। पैसे से पूरी दुनिया को खरीदने और बेचने का सपना देखने वाले लोग तो अपने ईमान तक की खरीद फरोख्त कर रहे हैं लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस घूसखोरी और भ्रष्टाचार से हमें कैसे निजात मिल सकती है? गहराई से देखा जाए तो इसका जवाब भी आपके आसपास ही है।

घूसखोरी और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए हर किसी के अपने विचार हैं. सीबीएसई ने अपने स्टूडेंट्स को जागरुक करने के लिए एक पूरा सप्ताह ही इसके नाम कर दिया। बाबा रामदेव का मत है कि 500 और एक हजार के नोट बंद कर दिए जाएं, भ्रष्टाचार खुद खत्म हो जाएगा। इन सभी मतों के बीच देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के मत से मैं सहमत हंू। देहरादून में एक कार्यक्रम में पहुंचे मिसाइल मैन ने बच्चों के चंचल मन में जो विचार भरा, वह वाकई इससे मुक्ति का एक टॉनिक साबित हो सकता है। डॉ. कलाम का कहना है कि, 'इसे खत्म करने के लिए हमें अपने घरों से शुरुआत करनी होगी. अगर घर में हमारे मम्मी या पापा घूस का पैसा लेकर आते हैं तो हमें उन्हें रोकना होगा। अगर हमारा बड़ा भाई भ्रष्टाचार के रास्ते पर चल पड़ा है तो हमें लगाम लगाना होगा, क्योंकि यह सभी भ्रष्टाचारी किसी न किसी के बाप, भाई या पति होते हैं। हम पैसे और अपनी ऐशपरस्ती के लालच में यह भूल जाते हैं कि हमारा अपना जो अपराध कर रहा है, वह कितना घातक है. चाचा कलाम ने मासूम बच्चों के मानस पटल पर भ्रष्टाचार खत्म करने की जो तरीका फिट किया है, अगर हम सभी अपने बच्चों के दिमाग में यह बात डाल दें तो हमारा भविष्य इससे सुरक्षित हो सकता है। हम खुद इस भ्रष्टाचार को रोकते हुए अपने बच्चे के दिमाग में भी यह बात डाल दें कि इसका नतीजा जनता और देश के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। हम ऐसाा करेंगे तो एक दिन गांधी जी का सपना जरूर साकार होगा। हमारे नेता, हमारे अधिकारी, हमारे क्लर्क सबको अगर उनके बच्चे इस कृत्य से रोकेंगे तो क्या वह नहीं रुकेंगे?

Friday, November 19, 2010

बेटे को जिंदगी दें...

बेटे को जिंदगी दें, मौत नहीं। यातायात पुलिस का यह संदेश हम आज भी बेहद हल्के अंदाज में लेते हैं। हमारे बेटे की बाइक लेने की जिद को हम इसलिए पूरा कर देते हैं, क्योंकि वह हमारा लाडला है। हमने कभी यह नहीं सोचा कि बेटे की जिद पूरी करने की हमारी यह तमन्ना हमारी जिंदगी में भी कितना अंधेरा ला सकती है। आज के दिखावे के युग में हम बेशक अपनी युवा पीढ़ी से कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हैं लेकिन हमारी एक गलती हमारे बच्चे की जान की दुश्मन बन सकती है.

बात कुछ दिन पहले की है। देहरादून के एक परिवार के इकलौते चिराग ने कॉलेज में एडमिशन लेने के साथ ही बाइक खरीदने की जिद की। पिता ने भी साथियों के सामने बेटे की पोजिशन मजबूत बनाने के लिए झट से बाइक दिला दी। कुछ दिनों बाद पता चला कि बेटे का कॉलेज जाते हुए भयंकर एक्सीडेंट हो गया है। इस एक्सीडेंट ने इस घर का इकलौता चिराग हमेशा के लिए छीनकर इनकी जिंदगी में अंधेरे भर दिए। कल तक जिस लाडले को देखकर बाप का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था, मां का कलेजा राहत महसूस करता था, आज वही बेबस थे। अपने दिल का टुकड़ा, अपना बेटा खो देने के बाद इस परिवार ने दूसरे परिवारों के वारिस बचाने का बीड़ा उठाया। शहर में एक प्रेस कांफ्रेंस में इस माता और पिता ने सभी पैरेंट्स से अपील की कि वह अपने बच्चों को जितना हो सके बाइक से दूर ही रखें। उन्होंने सबसे अनुरोध करते हुए बताया कि जिस तरह से अपनी लापरवाही की वजह से वह अपने बेटे को खो चुके हैं, वह नहीं चाहते कि दूसरे परिवारों को भी यह दंश झेलना पड़े।

इस परिवार के इस कदम की मैं दिल से सराहना करता हंू। आखिर हम क्यों भूल जाते हैं कि जवानी के बेलौस जोश में हम अपने लाडलों को हाई स्पीड बाइक्स दिला देते हैं। बेटा बाइक दौड़ाता है और खुद तो दुनिया से विदा हो जाता है लेकिन पीछे छोड़ जाता है कुछ जख्म, कुछ अंधेरे जो चाहकर भी नहीं भरे जा सकते। मेरी सभी ऐसे माता-पिता से इस मंच के माध्यम से अपील है कि वह 'बेटे को जिंदगी दें बाइक नहींÓ।

Tuesday, November 16, 2010

राखी निर्दोष है !

राखी भड़कीले कपड़े पहनती है। वो सबको एक ही नजर से देखती है। वो नजर जो हर मर्द को बुरी लगे। राखी का लहजा बेहद तल्ख है, इतना तल्ख की उसके शब्द कानों में कड़वाहट भर दें। राखी हाल में ही एक मर्द की मौत की वजह बनी। राखी बोलती है तो टीवी देखने वालों के हाथ रिमोट पर हरकत करना बंद कर देते हैं। मन गालियां देता है, कोसता है लेकिन सब उसे ही देखते हैं। हर किसी की जुबान पर राखी का नाम अपशब्दों के साथ ही आता है। मैं आज कह रहा हंू कि राखी निर्दोष है।
एक छोटे से घर और फैमिली में पैदा हुई राखी, बदनाम राखी नहीं थी। वो भी पढ़ लिखकर आगे बढऩा चाहती थी। कुछ बनना चाहती थी। लेकिन हमारा समाज, इस समाज ने ही तो उसे इस मुकाम तक पहुंचा दिया है। राखी को दसवीं के बाद पढऩे से रोकने की नाकाम कोशिशें की गई। उसके मन में दुनिया में अपना नाम कमाने का जुनून सवार था तो वह आगे बढऩे के लिए नित नए प्रयास करती रही। राखी ने शुरुआत की मिक्का के चुंबन से। मिक्का का एक चुंबन ने राखी को रातोंरात चमक धमक की दुनिया की मल्लिका बना दिया। विवादों से सुर्खियों में आने के बाद अगर कामयाबी जारी रखना है तो विवाद लगातार जारी रखने होंगे। कभी शरीफ तरीकों से कामयाबी हासिल करने की तमन्ना रखने वाली राखी को समाज ने इतना दुत्कारा कि वो विवादों की राह पर निकल पड़ी। इसमें राखी की गलती क्या है? हम राखी को हमेशा से ही गलत मानते हैं लेकिन अगर वो इंडिया की लड़कियों की आदर्श बन रही है तो इसमें बुरी बात नहीं है। आखिर ऊपर से बुरी दिखने वाली राखी अंदर से इतनी बुरी भी नहीं है। भले ही वह गलत राह पर चलकर कामयाब हुई हो लेकिन इसके पीछे उसका हार्ड वर्क और हाई पैशन भी रहा है। अपने टारगेट को लेकर उसकी एकाग्रता भी कम नहीं है। यह बात अलग है कि वह विवाह को मजाक मानती है लेकिन मर्दों की दुनिया में उसे जिस तरह का तिरस्कार मिला है, वह अगर औरतों की दुनिया किसी मर्द को मिल जाए तो वह भी ऐसा ही बन जाएगा। सामाजिक प्राणी होने के नाते मैं राखी के गलत व्यवहार का विरोध करते हुए उसकी अच्छाईयों की हिमायत कर रहा हंू।
अब गौर करते हैं राखी के लगातार इस परफॉर्मेंस पर। राखी को बेबाक और बदतमीज राखी बनाने वाले कौन हैं? यह सवाल आपने शायद कभी नहीं सोचा होगा। मैं बताता हंू। जब राखी मिक्का विवाद हुआ तो इसे हवा देने वाला था लोकतंत्र का चौथा स्तंभ। इस स्तंभ ने मामूली सी राखी को इतना सहारा दिया कि वह आगे बढऩे को बेताब हो गई। टेलीविजन की दुनिया की टीआरपी मेकर्स की लिस्ट में आज राखी का नाम सबसे ऊपर इसलिए है, क्योंकि लोग उसे देखना चाहते हैं और टीवी चैनल उन्हें खूब दिखाते हैं। राखी कब किसके बारे में कुछ बोले और न्यूज चैनलों को मसाला मिले। राखी को लेकर रियलिटी शोज बनाना आम सा हो गया है। एक चैनल तो जैसे राखी के ही नाम से अपनी रोटी जुटा रहा है। अब चैनल अपनी टीआरपी बढ़वाने को राखी से ऊल जुलूल हरकतें करवाता है तो इसमें किसकी गलती है? ऐसे तमाम सवाल हैं जो राखी की बुराईयों के लिए जिम्मेदार हैं।

Friday, November 12, 2010

लो जी आपकी सेवा में हम हाजिर हैं

‘आपकी दुआओं का ऐसा ये असर है, आप ही का है सबकुछ आपकी नज़र है’

कई दिनों की थका देने वाली बीमारी। बीमारी के दौरान के कई अलग अनुभव लेकर एक बार फिर हम आपके सामने हाजिर हैं। हालांकि मेरे परम मित्रों ने मेरे पिछले लेख पर कड़ा ऐतराज इसलिए जताया था क्योंकि वह मुझसे ऐसी अपेक्षा नहीं करते कि मैं इतनी जल्दी उन्हें छोडक़र चला जाऊं। लेख पब्लिश होने के दिनभर कई फोन आए और सबने दुआएं की। लेख की प्रतिक्रियाएं भी बता रही हैं कि दुनिया में दूसरों के लिए दुआ करने वालों की आज भी कोई कमीं नहीं है।
आपकी दुआओं से डेंगू के डंक से मैं बच निकलने में कामयाब रहा लेकिन कई दिनों का वायरल मेरा पीछा छोडऩे को तैयार नहीं है। मैं अभी भी दवाई ले रहा हंू लेकिन आज काम पर लौटने से एक अलग सी ऊर्जा महसूस कर रहा हंू।

बीमारी के दौरान डॉक्टरी सलाह थी कि मैं खूब पपीता, सेब और अनार का सेवन करूं ताकि जल्द से जल्द मेरी अंदर की कमजोरी दूर हो सके। पपीता, जुबान पर नाम आते ही पानी आना लाजिमी है लेकिन इस पपीते की हालत आज किसी से छिपी नहीं है। गांव में रहते हुए घर के पपीते और बाजार में बिक रहे इस पपीते में जमीन आसमान का फर्क इसलिए है, क्योंकि यह दवाईयों के सहारे तैयार किया गया है। बाजार से मेरी पतिव्रता पत्नी कई किलो पपीता ले आई। पहले तो मुझे इस बात की दिमागी शांति हुई कि पपीता खाकर जल्द खून में प्लेटलेट््स बढ़ेेंगे क्योंकि इस वायरल ने मेरे प्लेटलेट््स की संख्या कुछ कम कर दी थी। लेकिन जब खाना शुरू किया तो चिंता यह होने लगी कि कहीं यह पपीता मेरी जान का दुश्मन न बन जाए। पपीता खाने में जैसा स्वादहीन देखने में उतना ही सुुंदर। सबसे बड़ी बात की खाने पर साफ लग रहा था कि पपीते को जबर्दस्ती पकाया गया है। अब इस जबर्दस्ती पकाने का मतलब साफ है कि दवाओं या इंजेक्शन से यह काम किया जाता है। वास्तव में इस कई दिनों की छुट्टी के दौरान मैंने पांच किलो से ज्यादा पपीता खाया लेकिन मुझे नतीजा सिफर ही लगा।
मुझे इस दौरान फलों से खूब ही रूबरू होने का मौका मिला। आम दिनों में तो हम स्वस्थ अवस्था में इन बातों पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते होंगे लेकिन जब सेब मेरे सामने आया तो उसकी चमक गजब थी। आमतौर पर सेब को प्रकृति का एक नायाब तोहफा माना जाता है। लेकिन यह सेब इसलिए ज्यादा चमकदार था क्योंकि इसे भी जो दिखता है वही बिकता है कि तर्ज पर जबर्दस्ती चमकीला बनाया गया था। खैर सेब भी मैने जैसे तैसे खा ही लिए, रिजल्ट यहां भी शून्य ही प्रतीत हुआ।
डॉक्टरी सलाह थी कि मैं इस दौरान जमकर हरी सब्जियों का सूप का सेवन करूं, सो मैंने किया। लौकी की सब्जी बनाई तो देखने में बदसूरत लग रही लौकी वास्तव में पेस्टीसाइड्स की उपज दिख रही थी। बताया जाता है कि लौकी में इस कदर इंजेक्शन का यूज होता है कि यह एक रात में ही फुल साइज पर पहुंच जाती है। इससे मुझे और चिंता हुई, कहीं मैं यह जहरीली लौकी तो नहीं खा रहा हंू। बैंगन खाया तो वहां भी पेस्टीसाइड्स, गोभी के तो कहने ही क्या।
यह पपीता, सेब, बैंगन लौकी का जिक्र करने का मकसद यह है कि हमारे जीवन में मिलावट और इस मिलावट का जहर कितनी तेजी से हमारी नसों में घुल रहा है। आपकी दुआएं साथ रही तो मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगा लेकिन इस मिलावट को कौन रोकेगा? हम लाख कोशिश करते हैं कि इस मिलावट से बच सकें लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है।

Monday, November 8, 2010

दुआ करना भाई, विदा हो रहा हंू...

आज सुबह ऑफिस पहुंचा तो मित्रों से हाथ मिलाने पर पता चला कि मुझे फीवर है। कई दिनों से चल रहे इस फीवर के बीच मुझे कुछ डेंगू जैसे सिम्पटंप्स लगे तो मैंने झट से अपने डॉक्टर को फोन मिलाया। पूरी व्यथा बताई तो डॉक्टर ने तुरंत हास्पिटल आने की सलाह दे डाली। हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर ने हाथ पकड़ते ही डेंगू जैसे सिम्पटंप्स की पुष्टि कर दी और ब्लड टेस्ट की सलाह भी। अब मैं चिंतित हंू कि कहीं डेंगू न हो गया हो। खैर होनी को कोई नहीं टाल सकता। मैं आज जो ब्लॉग लिख रहा हंू, वह इसलिए ताकि कल हो न हो। वास्तव में मनुष्य एक पानी का बुलबुला ही है, कब, कहां क्या हो जाए कहना मुश्किल है। अभी मेरी रिपोर्ट नहीं आई है लेकिन 60 प्रतिशत उम्मीद डेंगू की ही की जा रही है। ऐसे में डॉक्टरी सलाह है कि मैं कुछ दिन घर पर आराम करूं, दिमाग को पूरा आराम दंू। जाहिर तौर पर ऑफिस से छुट्टी भी लेनी होगी। छुट्टी फिलहाल ले ली है, वापस लौटंूगा तो कुछ कहने के काबिल रहंूगा तो जरूर हाजिर हो जाऊंगा। फिलहाल तो आपकी दुआओं की आकांक्षा के साथ मैं कुछ दिन के लिए अपनी ब्लॉगिंग को विराम दे रहा हंू। इन चंद अशआर के साथ....

दुआ करना भाई, विदा हो रहा हंू
रही जिंदगी तो, मैं आकर मिलंूगा।
अगर मर गया तो, दुआ करते रहना
के आंसू बहाने की, कोशिश न करना।।

जय हिंद....

Saturday, November 6, 2010

किस काम के ऐसे त्यौहार???


फेस्टिवल ऑफ लाइट का खुमार अभी हमारे दिलों-दिमाग पर खूब ही छाया हुआ है। हमारे घर के आंगन पटाखों के टुकड़ों से अभी भी भरे हुए हैं। मेरे पड़ोस में रोजगार तलाशने के लिए आए एक शख्स की प्लास्टिक की तिरपाल की बनी झोंपड़ी पर एक रॉकेट गिरने की वजह से आग लग गई। उस वक्त पति काम से बाहर गया हुआ था और झोंपड़ी में मां अपने एक नन्हें बच्चे को सुला रही थी। उस बच्चे को जो कि अभी इस दुनिया की अमीरी-गरीबी से अंजान है, उस मासूम को जो शायद कल रोटी के जुगाड़ के लिए अपने बाप की तरह संघर्ष करेगा। दूसरा बच्चा अपनी झोंपड़ी के सामने रहने वाले एक अमीर घराने की दीवाली को अपनी आंखों से देखकर खुशी का अहसास कर रहा था। मैंने शाम को आग लगने के बाद हुआ हो-हल्ला सुना तो घर से बाहर आ गया। देखा एक अबला सी नारी अपनी झोंपडी की आग बुझाने के लिए पानी की बाल्टी डाल रही थी। हालांकि आग कम ही लगी थी, सो दो तीन पानी की बाल्टी से ही काबू में आ गई। इधर पेट की आग बुझाने के लिए रोटी का जुगाड़ करने गए पति और घर की आग बुझाने के लिए पत्नी की जद्दोजहद जारी थी तो उधर सामने वाले घर में पटाखों की आवाज लगातार बढ़ती जा रही थी। मैंने वहां पहुंचकर जितनी हो सकी, हेल्प की लेकिन अमीर लोग पटाखों की खुमारी में इस कदर बिजी थे कि कई घंटे तक उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। यह देखकर मेरे मन को आघात लगा। लगा कि ऐसे फेस्टिवल किस काम के जिससे हम अपने आंगन में रोशनी करने के लिए दूसरों के घर जलाएं। पटाखे इतने जलाएं कि हमारे पड़ोस में रहने वाला मध्यम श्रेणी का परिवार शर्मा जाए क्योंकि उसका बजट इतना नहीं है कि वह इतने महंगे और इतने सारे पटाखे खरीद सके। मिठाईयां बांटना सही है लेकिन इसका दायरा अगर सिर्फ अपने अमीर दोस्तों तक ही हो तो क्या फायदा? मैं ऐसे ही चुभते हुए और उत्तरहीन सवालों के साथ अपने घर लौट आया।

Thursday, November 4, 2010

अब कभी वह कोख हरी न होगी

वह दोनों प्रोफेशनल हैं। पंद्रह साल की प्रोफेशनल लाइफ में उन्होंने देहरादून में एक बड़ा सा मकान बना लिया है। इतना बड़ा की जब खाली सा लगने लगा तो दो-चार किराएदार रख लिए। पूरा परिवार कहीं और रहता है, इस हवेली रूपी घर में केवल पति-पत्नी ही रहते हैं। जरूरत है तो बस एक औलाद की जो शाम को थककर घर आने पर प्यार से पापा या मम्मी पुकार सके। सूनापन है तो उस लक्ष्मी का जो कि हर पल मम्मी और पापा के साथ ककहरा लगा सके। वजह खुद उनका प्रोफेशनलिज्म।

कल शाम को थोड़ी फुरसत मिली तो मैं इन जनाब के पास बैठ गया। कई सालों से मन में चल रहे सवाल को आखिरकार मैं कब तक रोक पाता। मैंने पूछ ही लिया घर के सूनेपन की वजह। फिर क्या था, उन्होंने जो बताया वह आज के प्रोफेशनल लोगों के लिए एक सबक है। पंद्रह सालों पुरानी बात है जब इन जनाब का विवाह एक सुंदर कन्या के साथ हुआ था। तब कॅरियर की शुरुआत ही थी। पत्नी ने अभी ग्रेजुएशन ही किया था तो उन्हें भी कॅरियर बनाने की चिंता थी। शादी के बाद दोनों ने पहले अपना कॅरियर बनाने की ठानी। इस बीच दो बार गर्भधारण हुआ तो वह कॅरियर की राह में बाधा लगा। गर्भपात करा दिया। उनकी यह भूल आज तक उन्हें सालती है। पति एक बड़े कॉलेज में लेक्चरर बन गए तो पत्नी ने भी पीएचडी करके एक बड़े संस्थान में बतौर प्रोफेसर नौकरी पा ली। अब दोनों को सुध आई मां-बाप बनने की लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। लाख कोशिश के बाद भी वह मां का सुख नहीं पा सकी। और अंदर तक पूछने पर बताया गया कि कॅरियर बनाने के लिए दोनो इस कदर बिजी हो गए कि बच्चे की याद ही नहीं आई। अब यह दोनों अकेलेपन की जिंदगी जी रहे हैं। हर घर में किलकारी गंूजती सुनते हैं तो यह दर्द और बढ़ जाता है लेकिन अब क्या होत है जब चिडिय़ा चुग गई खेत?

समझ नहीं आता कि जब हमारे लिए कॅरियर ही पहली प्राथमिकता होता है तो हम विवाह बंधन में बंधते ही क्यों हैं? अगर बंध जाते हैं तो आप प्रकृति के खिलाफ जंग करके कब तक खुद को मां-बाप बनने से रोक सकते हैं? अगर रोक लें तो अक्सर ऐसा होता है जैसा इस कपल के साथ हुआ है। इसलिए जरूरी है कि समय पर शादी होने के बाद प्रोफेशनलिज्म के बजाए समय पर बच्चे भी हो जाने चाहिएं। हमारी युवा पीढ़ी में प्रोफेशनलिज्म का यह ट्रेंड तेजी से पनप रहा है जो कि भविष्य के भारत के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है।

दीवाली की हार्दिक शुभकामनाओं सहित....
आफताब अजमत

Wednesday, November 3, 2010

वाह री कम्यूनिटी साइट

मेरे एक साथी। ऑफिस में एंट्री के साथ ही उनकी अंगुलियां पहुंच जाती हैं इंटरनेट पर। इसके बाद शुरू होता हैउनका फेसबुकिया कलाम। उनकी एक ऐसी कम्यूनिटी है, जिसमें वह खो जाना चाहते हैं। फेसबुक का दीवानापनइस कदर कि सुबह की मीटिंग से पहले और मीटिंग के बाद वह पूरी अपडेट देखकर ही फील्ड में निकलते हैं। चंूकिकलीग हैं, इसलिए उनका नाम नहीं बता सकता लेकिन उनके दीवानेपन के चर्चे आम हैं। देहरादून से लेकर दिल्लीतक के उनके मित्र भी उनके इस दीवानेपन को सलाम करते हैं। देखने पर लगता है, जैसे उनकी वॉल पोस्ट काउनकी तरह उनके फेसबुकिया मित्र भी बेसब्री से इंतजार करते हैं। ऑफिस से उनका वास्ता खबरों और कभीकभार हम जैसों के हालचाल लेने तक ही दिखाई देता है। दरअसल यह साथी तो महज एक नजीर हैं, हमारे युवाजितनी तेजी से कम्यूनिटी साइट की बनी हुई कम्यूनिटी में खो रहे हैं, वह एक बड़ा बदलाव है। मैं फेसबुकिंग याऑर्कुटिंग की बुराई कतई नहीं कर रहा हंू, लेकिन इन पर मिलने वाली सुविधाएं बरबस ही हर किसी को अपनीओर खींच लेती हैं। खासतौर से नए मित्र बनाने के शौकीन लोगों के लिए तो यहां अपार संभावनाएं हैं। हालांकि मैंभी फेसबुक और आर्कुट पर उपस्थित हंू लेकिन आज तक मैं इसे समझने की कोशिशों में ही लगा हुआ हंू।फेसबुक खोलता हंू, अपना अकाउंट में अपना हंसता हुआ फोटो देखता हंू. इससे ज्यादा समझने की बस कोशिशकरता हंू। अपने साथी की देखादेखी कई बार कोशिश की लेकिन जाने क्यों अभी तक मैं इस फेसबुकिया बुखारसे दूर ही हंू। मेरे ख्याल से हमें एक बात ये भी सोचनी चाहिए कि इस साइट पर कई प्रोफाइल ऐसे भी होते होंगे जोकि पूरी तरह से फर्जी होंगे। इन फर्जी प्रोफाइल से दोस्ती आपको महंगी भी पड़ सकती है। अब मेरे यह काबिलसाथी इस बाबत कितने जागरुक हैं, यह तो मुझे पता नहीं है लेकिन हमें इंटरनेट के समाज के साथ ही अपनेसमाज को भी देखना चाहिए। इस समाज की बहुत सी बुराईयां हैं जो हमें दूर करनी होंगी। युवा होने के नाते बहुतसे बदलाव करने होंगे। तभी जाकर हम एक अच्छे और सच्चे समाज को देख और जी सकते हैं।

सभी पाठकों को दीवाली और धनतेरस की हार्दिक बधाई...

Tuesday, November 2, 2010

पुरुष सिर्फ रसिक होता है !

पुरुष को हमेशा रसिक ही माना जाता रहा है। इसकी बानगी इन दिनों देखने को मिल रही है, आमिर खान के टाटा स्काई के एक विज्ञापन में। विज्ञापन में दिखाया गया है कि वह किस तरह एक पुरुष को जबर्दस्ती अपनी मर्जी के कपड़े पहना देते हैं और साथ में कहते हैं कि, 'न तो पान की पीक दिखाई देगी और न ही लिपिस्टिक दा दागÓ। अब इस दाग का अगर ऑपरेशन किया जाए तो कई बातें सामने आती हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि पुरुष सिर्फ दूसरी महिलाओं के प्रति आकर्षित होने और उनके साथ रंगरेलियां मनाने के लिए ही पैदा हुआ है। पुरुष को ऐसे कपड़े पहनने चाहिएं ताकि घर जाने पर उसका रसिकपन बीवी की नजर में न आए। अब यह उन पत्नी प्रेमी पुरुषों के लिए बहुत हर्ट करने वाली बात भी होगी जिनके लिए दफ्तर और घर की दौड़ मुल्ला की दौड़ की माफिक होती है। यह विज्ञापन और भी कई कहानियां अपने साथ लिए चलता है। विज्ञापन का सार है कि आप किसी की जबर्दस्ती अपने ऊपर क्यों ढ़ोंएं लेकिन इसकी सच्चाई तो यही है कि पुरुष ही महिलाओं के प्रति आकर्षण का गुण रखता है। अब यह बात अलग है कि कई घर सिर्फ इसलिए टूट जाते हैं, क्योंकि वहां किसी बाहरी महिला का हस्तक्षेप ज्यादा बढ़ जाता है। महिला अगर अपनी मर्जी से किसी पुरुष को बर्बाद कर दे तो कोई कुछ नहीं कहता लेकिन पुरुष अगर महिला का प्रेमी बन जाए तो आफत। महिलाएं अगर कई पुरुषों के संपर्क में रहें तो कोई बात नहीं लेकिन पुरुष को 'दिल मांगे मोरÓ फिल्म में कई महिलाओं के साथ ही दिखाया जाता है। मैं हालांकि महिलाओं की आलोचना नहीं कर रहा हंू, लेकिन यह बात कहना चाहता हंू कि हमेशा पुरुष ही रसिक नहीं होता है। महिलाएं भी अब किसी से कम नहीं हैं।