विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Friday, November 12, 2010

लो जी आपकी सेवा में हम हाजिर हैं

‘आपकी दुआओं का ऐसा ये असर है, आप ही का है सबकुछ आपकी नज़र है’

कई दिनों की थका देने वाली बीमारी। बीमारी के दौरान के कई अलग अनुभव लेकर एक बार फिर हम आपके सामने हाजिर हैं। हालांकि मेरे परम मित्रों ने मेरे पिछले लेख पर कड़ा ऐतराज इसलिए जताया था क्योंकि वह मुझसे ऐसी अपेक्षा नहीं करते कि मैं इतनी जल्दी उन्हें छोडक़र चला जाऊं। लेख पब्लिश होने के दिनभर कई फोन आए और सबने दुआएं की। लेख की प्रतिक्रियाएं भी बता रही हैं कि दुनिया में दूसरों के लिए दुआ करने वालों की आज भी कोई कमीं नहीं है।
आपकी दुआओं से डेंगू के डंक से मैं बच निकलने में कामयाब रहा लेकिन कई दिनों का वायरल मेरा पीछा छोडऩे को तैयार नहीं है। मैं अभी भी दवाई ले रहा हंू लेकिन आज काम पर लौटने से एक अलग सी ऊर्जा महसूस कर रहा हंू।

बीमारी के दौरान डॉक्टरी सलाह थी कि मैं खूब पपीता, सेब और अनार का सेवन करूं ताकि जल्द से जल्द मेरी अंदर की कमजोरी दूर हो सके। पपीता, जुबान पर नाम आते ही पानी आना लाजिमी है लेकिन इस पपीते की हालत आज किसी से छिपी नहीं है। गांव में रहते हुए घर के पपीते और बाजार में बिक रहे इस पपीते में जमीन आसमान का फर्क इसलिए है, क्योंकि यह दवाईयों के सहारे तैयार किया गया है। बाजार से मेरी पतिव्रता पत्नी कई किलो पपीता ले आई। पहले तो मुझे इस बात की दिमागी शांति हुई कि पपीता खाकर जल्द खून में प्लेटलेट््स बढ़ेेंगे क्योंकि इस वायरल ने मेरे प्लेटलेट््स की संख्या कुछ कम कर दी थी। लेकिन जब खाना शुरू किया तो चिंता यह होने लगी कि कहीं यह पपीता मेरी जान का दुश्मन न बन जाए। पपीता खाने में जैसा स्वादहीन देखने में उतना ही सुुंदर। सबसे बड़ी बात की खाने पर साफ लग रहा था कि पपीते को जबर्दस्ती पकाया गया है। अब इस जबर्दस्ती पकाने का मतलब साफ है कि दवाओं या इंजेक्शन से यह काम किया जाता है। वास्तव में इस कई दिनों की छुट्टी के दौरान मैंने पांच किलो से ज्यादा पपीता खाया लेकिन मुझे नतीजा सिफर ही लगा।
मुझे इस दौरान फलों से खूब ही रूबरू होने का मौका मिला। आम दिनों में तो हम स्वस्थ अवस्था में इन बातों पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते होंगे लेकिन जब सेब मेरे सामने आया तो उसकी चमक गजब थी। आमतौर पर सेब को प्रकृति का एक नायाब तोहफा माना जाता है। लेकिन यह सेब इसलिए ज्यादा चमकदार था क्योंकि इसे भी जो दिखता है वही बिकता है कि तर्ज पर जबर्दस्ती चमकीला बनाया गया था। खैर सेब भी मैने जैसे तैसे खा ही लिए, रिजल्ट यहां भी शून्य ही प्रतीत हुआ।
डॉक्टरी सलाह थी कि मैं इस दौरान जमकर हरी सब्जियों का सूप का सेवन करूं, सो मैंने किया। लौकी की सब्जी बनाई तो देखने में बदसूरत लग रही लौकी वास्तव में पेस्टीसाइड्स की उपज दिख रही थी। बताया जाता है कि लौकी में इस कदर इंजेक्शन का यूज होता है कि यह एक रात में ही फुल साइज पर पहुंच जाती है। इससे मुझे और चिंता हुई, कहीं मैं यह जहरीली लौकी तो नहीं खा रहा हंू। बैंगन खाया तो वहां भी पेस्टीसाइड्स, गोभी के तो कहने ही क्या।
यह पपीता, सेब, बैंगन लौकी का जिक्र करने का मकसद यह है कि हमारे जीवन में मिलावट और इस मिलावट का जहर कितनी तेजी से हमारी नसों में घुल रहा है। आपकी दुआएं साथ रही तो मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगा लेकिन इस मिलावट को कौन रोकेगा? हम लाख कोशिश करते हैं कि इस मिलावट से बच सकें लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है।

1 comment:

अजित गुप्ता का कोना said...

कभी पपीता हमारा भी प्रिय फल हुआ करता था लेकिन अब तो जान का दुश्‍मन बन गया है। खाते ही पेट दर्द होने लगता है इसलिए हमने तो तौबा कर ली है। ऐसे ही हाल सेव के हैं, खाओ तो एसीडिटी के शिकार। बस अब तो हम सब भगवान भरोसे ही इस दुनिया में जी रहे हैं, मिलावट करने वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है जनसंख्‍या कम करने की।