मेरे एक साथी। ऑफिस में एंट्री के साथ ही उनकी अंगुलियां पहुंच जाती हैं इंटरनेट पर। इसके बाद शुरू होता हैउनका फेसबुकिया कलाम। उनकी एक ऐसी कम्यूनिटी है, जिसमें वह खो जाना चाहते हैं। फेसबुक का दीवानापनइस कदर कि सुबह की मीटिंग से पहले और मीटिंग के बाद वह पूरी अपडेट देखकर ही फील्ड में निकलते हैं। चंूकिकलीग हैं, इसलिए उनका नाम नहीं बता सकता लेकिन उनके दीवानेपन के चर्चे आम हैं। देहरादून से लेकर दिल्लीतक के उनके मित्र भी उनके इस दीवानेपन को सलाम करते हैं। देखने पर लगता है, जैसे उनकी वॉल पोस्ट काउनकी तरह उनके फेसबुकिया मित्र भी बेसब्री से इंतजार करते हैं। ऑफिस से उनका वास्ता खबरों और कभीकभार हम जैसों के हालचाल लेने तक ही दिखाई देता है। दरअसल यह साथी तो महज एक नजीर हैं, हमारे युवाजितनी तेजी से कम्यूनिटी साइट की बनी हुई कम्यूनिटी में खो रहे हैं, वह एक बड़ा बदलाव है। मैं फेसबुकिंग याऑर्कुटिंग की बुराई कतई नहीं कर रहा हंू, लेकिन इन पर मिलने वाली सुविधाएं बरबस ही हर किसी को अपनीओर खींच लेती हैं। खासतौर से नए मित्र बनाने के शौकीन लोगों के लिए तो यहां अपार संभावनाएं हैं। हालांकि मैंभी फेसबुक और आर्कुट पर उपस्थित हंू लेकिन आज तक मैं इसे समझने की कोशिशों में ही लगा हुआ हंू।फेसबुक खोलता हंू, अपना अकाउंट में अपना हंसता हुआ फोटो देखता हंू. इससे ज्यादा समझने की बस कोशिशकरता हंू। अपने साथी की देखादेखी कई बार कोशिश की लेकिन न जाने क्यों अभी तक मैं इस फेसबुकिया बुखारसे दूर ही हंू। मेरे ख्याल से हमें एक बात ये भी सोचनी चाहिए कि इस साइट पर कई प्रोफाइल ऐसे भी होते होंगे जोकि पूरी तरह से फर्जी होंगे। इन फर्जी प्रोफाइल से दोस्ती आपको महंगी भी पड़ सकती है। अब मेरे यह काबिलसाथी इस बाबत कितने जागरुक हैं, यह तो मुझे पता नहीं है लेकिन हमें इंटरनेट के समाज के साथ ही अपनेसमाज को भी देखना चाहिए। इस समाज की बहुत सी बुराईयां हैं जो हमें दूर करनी होंगी। युवा होने के नाते बहुतसे बदलाव करने होंगे। तभी जाकर हम एक अच्छे और सच्चे समाज को देख और जी सकते हैं।
सभी पाठकों को दीवाली और धनतेरस की हार्दिक बधाई...
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