चाँद और फिजा मिले और आखिरकार वही हुआ जो होना था, आज चाँद और फिजा तौ अलग हो गए, लेकिन समाज में उस बहस को जिंदा कर गए जो समाज की नज़र में किसी पाप से कम नही है। समाज पहले से ही प्यार का दुश्मन रहा है। कही प्यार के पंछियों को जलाकर मर डाला जाता है तौ कहीं उनका समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है। चन्द्र मोहन और अनुराधा ने इस बहस को एक बार फ़िर से चिंगारी देने का काम किया है। सब बार-बार प्यार को ही दोष दे रहे हैं। किसी को इस बात का अंदाजा ही नही है की अगर प्यार होता तौ ऐसा एंड नही होता। प्यार तौ वो अहसास है जो किसी को हो जाए तौ बस हो ही जाता है। मन में उन प्यार के पंछियों के भी शंका होना लाजिमी है, जो प्यार को ही पूजा मानते हैं। लेकिन मेरा उन सब प्यार करने वालों से अनुरोध है की वह अपने प्यार पर भरोसा करें। बिना विश्वास के प्यार नही हो सकता है। सोचने वाली बात ये है की चाँद और फिजा का प्यार था या इमोशनल अत्याचार.
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