विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Sunday, March 29, 2009

ये कैसी राजनीती

हाल के दिनों में वरुण गाँधी नाम के नेता ने जो कुछ किया वह एक विचारणीय पहलू है। सबसे पहली सोचने वाली बात तौ ये है की क्या इस तरह की राजनीती से देश का भला हो सकता है? क्या इस तरह की बयानबाजी देश को बाँटने की और अग्रसर नही कर रही है। कल अगर एक बार फ़िर बंटवारा होता है तौ इसके लिए कोई धर्म विशेष जिम्मेदार न होकर ये देश के भावी नेता जिम्मेदार होंगे। लाल कृष्ण अडवाणी तक ने वरुण गाँधी को संयम बरतने की नसीहत दे डाली। इससे साफ़ होता है की गलती किसकी है। आख़िर कब तक भाजपा हिंदूवादी सोच में बंधकर रहेगी। जब तक भाजपा ख़ुद को नही बदलती, तब तक कुछ भी हल निकलना सम्भव नही है। अगर यौंग जेनेरेशन में ही ऐसी सोच पनप रही है तौ फ़िर वह दिन दूर नही जब गांधीजी के सपनो का देश बंटवारे की कगार पर आ जाएगा.

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