विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Saturday, September 25, 2010

ये मीडिया किस देश की है???


लंबी कोशिशों के बाद हमें राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी मिली। मेजबानी के टाइम पर हर कोई भारत की इस जीत को लेकर बेकरार दिखाई दिया। दे भी क्यों न, आखिर हमने इतने देशों को पीछे छोड़कर कॉमनवेल्थ की मेजबानी अपनी झोली में जो डाली थी। अर्सा बीत गया, मीडिया को भी याद नहीं रहा। इस बीच जैसे ही इस महाआयोजन का समय नजदीक आया तो मीडिया भी इसमें खबरें तलाशने लगी। थोड़े दिनों के बाद हमारे काबिल पत्रकारों ने कड़वी सच्चाई भी सामने लानी शुरू कर दी। वक्त बीतता गया, हर दिन एक नई चौंकाने वाली खबर सामने आती गई। सरकार और उसके नुमाइंदे भी मीडिया की इस कसरत पर हिल गए। यहां तक की बात तो सही थी, लेकिन अब मीडिया इन मामलों और अपनी मसालेदार खबर तलाशने के चक्कर में यहां तक भूल गई कि यह हमारे देश की इज्जत है। इस आयोजन के न होने की परिस्थिति में उसी देश की किरकिरी होगी, जहां यह मीडिया अपने संस्थान चला रही है। मैं हालांकि मीडियाकर्मी होने के नाते अपने काबिल साथियों की बुराई बिल्कुल नहीं कर रहा हूं, लेकिन मेरा मानना है कि मीडिया को अब जब आयोजन अपने चरम पर है, नेगेटिविटी पैदा करने के बजाए कुछ पॉजिटीव बातें भी सामने लानी चाहिएं। इस आयोजन की महत्ता कितनी है, इसकी सबसे बेहतर नजीर है हाल में खेल गांव का दौरा करने आए फेनेल ने दौरे के बाद की प्रतिक्रिया पूरी तरह से पॉजिटीव दी। ऐसा नहीं है कि उन्होंने जमीनी सच्चाई नहीं देखी होगी, बल्कि इसके पीछे का सच यह है कि इस आयोजन को सफल बनाने में उनका एक बयान बहुत महत्ता रखता है। इसी दूरगामी सोच को मानते हुए उन्होंने आल इज वेल बोल डाला। अब अगर दूसरे देश से आए परदेसी इस आयोजन की महत्ता को समझ रहे हैं तो हमारी मीडिया इस कदर खबरची बनने पर क्यों लगी है। ठीक है, मैं एक पत्रकार हूं, या फिर लोगों तक सरकारी नाकामी का सच लाना मेरे लिए एक मुहिम है लेकिन यह भी तो सोचना होगा कि हम इसी देश के बाशिंदे हैं। हमारे देश की शान पर उंगली उठना हमारी शान पर उंगली उठने के बराबर है। अगर फेनेल एक बयान नकारात्मक दे देते तो राष्ट्रमंडल खेलों से मुंह मोडने को तैयार बैठे कई देश तुरंत भागीदारी करने से इंकार कर देते, लेकिन फेनेल की इस दूरदर्शी सोच को अब हमें मानना ही होगा। हमें समझना होगा कि अब हमें किसी भी तरह से इस आयोजन को सफल बनाने की कोशिश करनी है। मेरी सभी मीडियाकर्मियों से अपील है कि वह शेरा का सीना गर्व से चौड़ा कर दें, ताकि कल अतिथि देवो भवः के देश में आने वाले परदेसी यहां की तारीफ करके वापस जाएं।

जय हिंद...

1 comment:

Anonymous said...

aftab ji aap tau nhamesha bahut badhiya likhte rahe hai. waqai dil ko choo lene wala likha hai.