विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Thursday, September 16, 2010

जब मुझे ही देनी पड़ी घूस...


ईद की छुटि्‌टयां मनाने के लिए घर पहुंचा। ईद खुशी के साथ मनाई लेकिन पास की कालोनी में भारी बरसात के पानी के विकराल रूप ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया। पता चला कि कालोनी में ड्रेनेज सिस्टम ठप हो चुका है। कई दिन तक पानी न निकलने की वजह से लोगों में आक्रोश फैल गया। लोगों ने सड़क जाम की तो नगर निगम को होश आया। टीम ने नाले की सफाई के लिए तीन जेसीबी मौके पर लगा दी। इस बीच मेरे घर के सामने से यह नाला गुजरने की वजह से पिताजी को रास्ता बंद होने का डर सताने लगा। टीम पूरे नाले की दोबारा खुदाई करवाते हुए जब हमारे घर के सामने पहुंची तो हमारी धड़कने बढ़ गई। इस बीच एक दरोगा जी हमारे पास आकर बैठ गए। इधर टीम की जेसीबी काम करने में लगी हुई थी तो उधर दरोगा जी मीठीमीठी बातें हमें एक दिलासा दे रहे थे। इस बीच मेरा भाई लगातार दरोगा जी के पास लगकर कुछ देने की कोशिश कर रहा था। इधर मैं अपने भाई की इस हरकत को नोटिस करने की कोशिश में लगा था तो दरोगा जी के साथ का पुलिसकर्मी अकड़ दिखाने लगा। पिताजी ने तुरंत मुझे मामले में आगे ला दिया। मैंने पूछा तो पुलिसकर्मी ने बताया कि नाले की खुदाई में घर से निकलने का रास्ता बचाने के लिए आपके पिताजी ने एक हजार रुपए का सौदा किया था, लेकिन अब पैसे देने के टाइम पर वह महज पांच सौ रुपए ही दे रहे हैं। अपनी आंखों के सामने यह घूसखोरी देखकर मेरे अंदर का पत्रकारी कीड़ा जाग गया। मामला बिगड़ता देख मीठीमीठी बातें कर रहे दरोगा जी भी वहां से कड़वा मूड लेकर चलते बने। मैं तुरंत दरोगा जी के पास पहुंचा तो उनका लहजा पैसे की वजह से बदल चुका था। दरोगा जी ने तुनकते हुए जवाब दिया कि आपके पिताजी ने रास्ता छुड़वाने के लिए पैसे की बात की थी लेकिन अब पैसे देने में आनाकानी कर रहे हैं। मेरे पूछे बिना पिताजी की यह हरकत पहले पहल तो मुझे नागवार गुजरी लेकिन इस बीच पैसे कम की बात पर अड़ने वाले पुलिसकर्मी बचाया हुआ रास्ता तोड़ने का दबाव बनाने लगे। अब रास्ता बचाने के लिए पैसे देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। मजबूरी में मुझे अपने हाथों से उन घूसखोर पुलिसकर्मियों को घूस के पैसे देने पड़े। लेकिन इस घूसखोरी का जरिया मैं और मेरा परिवार बना, यह कम से कम मेरे लिए तो बिल्कुल विचित्र और न लगने वाली बात थी। पिताजी ने घर से निकलने का रास्ता बचाने के लिए एक दरोगा को पैसे देने का कमिटमेंट कर लिया लेकिन इस कमिटमेंट ने मेरे लिए हजारों सवाल पैदा कर दिए। सबसे पहला सवाल तो यही था कि पुलिस की दागदार छवि आखिर कब धुलेगी? दूसरा सवाल ये था कि इस घूसखोरी के लिए जिम्मेदार कौन हैं? इन सवालों के जवाब भी मेरे और मेरे परिवार के इर्द गिर्द ही मिल सकते थे। अगर पिताजी अपना रास्ता बचाने के लिए पुलिसकर्मियों के पास बेबसी भरी गुहार न लगाते तो क्या यह दिन आता? काम नगर निगम की टीम कर रही है लेकिन व्यवस्था बनाने वाली पुलिस अपनी व्यवस्थाएं तलाश रही है तो यह सरकारी व्यवस्थाओं की नाकामी बताने के लिए काफी है। जब मौके पर नगर निगम का इंजीनियर मौजूद था तो ऐसी परिस्थिति क्यों आई कि पुलिस वाले पैसा खाने लगे? सवाल बहुत हैं, इनके जवाब भी हम खुद हैं लेकिन इस घूसखोरी का शिकार होना मेरे लिए ताउम्र न भूलने वाला दंश बन गया।

3 comments:

Ra said...

आपकी पोस्ट और आपकी प्रोफाइल ,दोनों को पढ़कर अच्छा लगा ,,,,!!!

अथाह...

!!!

माधव( Madhav) said...

सुन्दर लेखन

Harish said...

Bhai Ghoos aaj ke samay me bhramastra ban gayi hai. aur iske siway hamare paas koi hathiyar nahi bachata hai sarkari chaal-baziyon se bachane ka.
bahut accha laga.