'हिम्मत वतन की हमसे है, ताकत वतन की हमसे है'
लेकिन यहां न तो हिम्मत देखने को मिल रही है और न ही ताकत। वजह युवाओं का आर्मी से दूर भागना या फिर यहां की मुश्किल जिंदगी. बात कुछ भी हो लेकिन यह एक सच है कि आज आर्मी को लेकर इतना ज्यादा क्रेज देखने को नहीं मिल रहा है. एक समय था जब हर घर से एक फौजी होने को गर्व की बात माना जाता था. इसकी हालांकि कई वजहें थी, जिसमें सबसे बड़ी वजह थी, बड़े परिवार. बड़े परिवार में अगर एक बेटा देश पर जान कुर्बान कर देता था तो इसे जहां एक ओर गर्व से जोडक़र देखा जाता था तो दूसरी ओर परिवार भी इस सदमें से आसानी से पार पा जाता था. लेकिन अब पर्रिस्थितियां काफी बदल गई हैं. अब देश पर मर मिटने की बातें, बातें ज्यादा लगती हैं. इसकी वजह से कई बार तो जैसे मुश्किल हालात बन जाते हैं. हालांकि आज भी यह सच्चाई है कि देश पर कुर्बान होने का जज्बा रखने वाले लोग आज भी अपने सपनों में अपने बेटों को मां को समर्पित होता ही देखना चाहते हैं लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि ऐसे लोगाों की संख्या काफी कम होती जा रही है.
इसकी वजह से जो सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रही है, वह है आर्मी में अधिकारियों की लगातार बढ़ती कमी. यहां आज भी चार्म की इस लाइफ को युवा अनुशासन की जिंदगी मानकर इससे किनारा कर रहे हैं. यह एक सच्चाई है कि युवा इससे किनारा कर रहे हैं लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि आर्मी का चयन की प्रक्रिया में आज भी वही मानक हैं, जबकि आज का युवा उन मानकों पर खरा उतरने में मुश्किलों का सामना करता है. करे भी क्यों न आखिर आज न तो वह ताजी हवा है, न ही सुबह उठकर नेचर का मजा लेने के वो पल. सबकुछ मशीन की तरह से बदल चुका है, हर जगह तेजी से बदलाव हो रहे हैं. अब अगर आपके पास सुबह घूमने का टाइम है तो सुबह की ताजी हवा गायब हो चुकी है, घर का दूध दही और मक्खन तो जैसे गायब ही हो चुके हैं. रंग बिरंगे कागजों और पालिथीन में लिपटा घी दूध जैसे शारीरिक नहीं मानसिक पूर्तिभर के लिए रह गया है. ऐसे में अगर हम युवाओं में ताकत की बात करें तो पहले की अपेक्षा यह काफी कम हो चुकी है. ऐसे में आर्मी को भी अपनी चयन प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन करने की दरकार है. हां यह बात सही है कि बहुत ज्यादा समझौता सही नहीं है लेकिन कुछ लचीलापन युवाओं को इस ओर एक बार फिर आकर्षित कर सकता है. कई बार तो मैं यह भी सोचता हूं कि अब से दस साल के बाद यह समस्या विकराल रूप ले लेगी. क्योंकि अब से दस साल बाद आने वाले युवा को अपनी प्रारंभिक पढ़ाई के दौरान ही कमाई में भी इंटरेस्ट होगा. ऐश परस्ती का जितनी तेजी से प्रचार व प्रसार हो रहा है, वह एक नए युग की ओर इशारा करता है, एक ऐसा युग जहां युवा सिर्फ खुद के लिए जिएगा, जहां मान मर्यादाओं की कोई सीमा नहीं रह जाएगी, ऐसे में भारत मां की रक्षा करने वालों की संख्याा कितनी होगी, कहना मुश्किल है?
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