विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Monday, July 5, 2010

सब मार्केट वैल्यू की बात है जनाब

माही और साक्षी के अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेने की खबर जैसे ही हवा में फैली तो जैसे पूरी मीडिया का रुझान इसी ओर चला गया। कई दिनों से बीजेपी का भारत बंद दो दिन पहले अचानक टीवी चैनलों से गायब हो गया। एक मीडियापर्सन होने के नाते मैं धोनी के विवाह समारोह का बाहर से भी साक्षी तो नहीं बन पाया लेकिन अपने पड़ोस से लेकर तमाम मिलनेजुलने वालों का एक ही सवाल बारबार मुझे इस इंटरनेशनल घटनाक्रम को याद दिलाता। अलस्सुबह घर से दूध लेने के लिए निकला तो रास्ते में रावत जी मिल गए। खबरों से विशेष प्रेम रखने वाले रावत जी ने मिलते ही पहला सवाल दागा कि जब धोनी मीडिया को बुलाना ही नहीं चाहता तो आखिर आप मीडिया वाले उसके पीछे क्यों पड़े रहते हैं? रावत जी के इस सवाल को मैं तुरंत तो कोई जवाब नहीं दे पाया लेकिन इस सवाल ने मुझे सवालों में ला खड़ा किया। घर वापस आकर मैंने चाय की चुस्कियों के साथ रावत जी के सवाल का जवाब तलाशना शुरू किया। दिनभर मैं टीवी चैनलों पर धोनी और साक्षी की सगाई से लेकर शादी तक की तमाम खबरें देखता रहा और मेरी यह सोच और गहरी होती गई। दिल्ली से आई पूरी मीडिया ने इस मामले को महज कुछ ही घंटो में लाइव दिखाकर सबकी आंखों में उतार दिया। बीवी के कड़े विरोध के बावजूद मेरी निगाहें टीवी चैनल से और हाथ रिमोट से नहीं हट पा रहा था। काफी देर का टीवी ड्रामा देखने के बाद मेरा जो निष्कर्ष आया, वह आज की कड़वी सच्चाई है। हर शख्स मीडिया की आलोचना कर रहा था कि आखिर मीडिया इतना हाईप क्यों दे रहा है लेकिन साथ ही उनकी निगाहें भी पलपल कोई नई खबर तलाश रही थी।अब अगर कोई एक चैनल या अखबार इस खबर पर लगाम लगाता या न छापता तो उसकी मार्केट वैल्यू क्या होती? क्या कोई उस चैनल को इन खास पलों में देखना पसंद करता? क्या कोई भी रीडर चाहता कि उनके पसंदीदा अखबार में माही और उसकी हमसफर की फोटो या खबर न हो? क्या कोई भी आम आदमी ऐसा है जिसने यह खबर देखी, सुनी या पढ़ी न हो? निश्चित तौर पर आपका जवाब भी ना में ही आएगा। यही तो जवाब है रावत जी के सवाल का, उस सवाल को जो उन्होंने सुबह उठते ही मुझ पर दाग दिया था। अब मेरी समझ में आया कि यह सब मार्केट वैल्यू का सवाल है और अपने रीडर्स को रिझाए रखने का मामला है।

1 comment:

Anonymous said...

आपकी बात बिल्कूल ठिक है

ब्लाँगवाणी के जाने के बाद एक नया ब्लाँग एग्रीगेटर भूतवाणी डाँट काँम(bhootvani.com). पुरा पढेँ>