विचार कभी सामान्य नहीं होते
विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....
आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत
Saturday, July 17, 2010
ठेका शादियों का
लगता है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने शादियों का ठेका ले लिया है। शिल्पा शेट्टी की शादी के बाद से यह प्रथा चली है तो बिना शादी की खबरों के चैनल भी सूने से लगते हैं। ऑफिस में काम कर रहा था कि अचानक स्टार न्यूज पर शादियों का एक गाना बजने लगा। अचानक से मेरी नजरें स्टार न्यूज की ओर पड़ी तो मैं चौंक गया। इस बार फिर एक शादी का आयोजन स्टार न्यूज की ओर से ब्रॉडकास्ट किया जा रहा था। उत्सुकता हुई तो मैंने अपनी नजरें टीवी चैनल पर गड़ा दी। अगले ही पल का माजरा देखकर मुझे हंसी और चिंता दोनो ही हुई। सवाल था कि न्यूज कंटेट और न्यूज का कांसेप्ट किस दिशा में जा रहा है। दरअसल चैनल जिस शादी की फुटेज शादी के गीतों के साथ दर्शकों को परोस रहा था, वह वडोदरा में हो रही किसी आम शादी की थी। इस खबर में दिखाया जा रहा था कि एक कुत्ता अपनी इंसान बहन की शादी कर रहा है। यह कुत्ता कितना संवेदना वाला है कि शादी में वह खुद ही कन्यादान भी कर रहा था। शादी की तैयारियों के मद्देनजर इस दौरान टीवी चैनल की ओर से कुत्ते को बारबार कन्या का भाई बताकर भाईबहन की जुदाई के गीत माहौल को गमगीन बना रहे थे। यह शादी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस खबर को प्रमुखता से चलाना, मीडिया और खबरों की एक नई दिशा की ओर इशारा करता है। इसे देखने पर लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने तो शादियों का ठेका ही ले लिया है। यह ट्रेंड शुरू हुआ शिल्पा शेट्टी की शादी से तो सानिया मिर्जा से लेकर धोनी तक की शादियों में मीडिया बिन बुलाए मेहमान बनकर अपने दर्शकों के लिए हर नए एंगल पर खबर दिखाते रहे। शादियों को खबर बनाकर दिखाने का यह ट्रेंड भले ही पुराना हो लेकिन शादी में कुत्ते को भाई बनाकर विदाई लेने वाली खबरें अपने आप में एक नई दिशा की ओर इशारा करता है। मीडिया की उस दिशा की ओर जो कि भटकती दिखाई दे रही है। बात कुछ भी हो लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का शादियां कराने का यह ठेका जरा हजम नहीं होता।
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