विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Monday, August 2, 2010

इन्हें तो बख्श दो


आज फिर मैंने महाराष्ट्र में राज ठाकरे की सेना का विरोध देखा। मीडिया और उत्तरी भारतीयों पर हमले के बाद अब यह हमला उन मासूमों की प्रतिभा पर था जो शायद सरहद के मायने भी नहीं समझते होंगे. कल की दुनिया का यह भविष्य अगर इस छिटपुन में ही सरहदों की दीवारों के बारे में समझ लेगा तो क्या कभी हमारे और पड़ोसी देश के बीच तालमेल बन सकेगा. पाकिस्तान के आतंकवाद ने हमारे देश को भले ही कितना भी नुकसान पहुंचाया हो लेकिन इसके लिए हम उन मासूमों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, जिन्होंने अतिथि देवो भवः वाले देश में अपना टेलेंट दिखाने के लिए आसरा लिया है. उनके देश में नाच गाने को गलत माना जाता है तो उन्होंने अपनी प्रतिभा को एक मंच देने के लिए भारत का सहारा लिया. वैसे इसमें कोई बुराई भी नहीं होनी चाहिए. लेकिन कुछ लोग अपनी जबर्दस्ती और विरोध के लिए इन बच्चों को चुन रहे हैं तो यह मेरे ख्याल से तो गलत है. क्या जब इंडिया का कोई प्लेयर विदेशी धरती पर जाकर पदक जीतकर लाता है तो वहां उसका विरोध होता है. नहीं ना, क्योंकि वह प्लेयर तो सिर्फ अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए किसी प्रतियोगिता में जाता है. ऐसे तमाम मामले होंगे जब हम हिंदुस्तानियों को उनकी सरजमीं पर ही धूल चटाई है, इस पर गर्व भी किया है लेकिन अगर वह हमारा विरोध करते तो जो आनंद और गर्व के लम्हें हमें मिले हैं, क्या वो कभी मिल पाते? यह सोचना चाहिए उन लोगों को जो कि अपनी राज्यवादिता और देशभक्ति पर नाज करते हैं. यह समझना चाहिए उन लोगों को जो खुद को कानून से भी ऊपर मानते हुए पल भर में इसकी धज्जियां उड़ा देते हैं. यह जानना चाहिए उन लोगों को जो खुद को उस भारत माता का सच्चा देशभक्त मानते हैं, जिसके मूल में ही अतिथि को भगवान का दर्जा दिया गया है. बड़ा दुख होता है, यह देखकर कि जब कुछ लोगों की वजह से पूरा धर्म बदनाम हो जाता है. उनका धर्म तो बदनाम हो चुका है लेकिन अब ये खुरापाती लोग अपना धर्म क्यों बदनाम करने पर लगे हुए हैं? आज इस संस्कृति का लोहा पूरी दुनिया मानती है तो भला इन लोगों को क्या हक है इस देवसंस्कृति के नियमों के साथ खिलवाड़ करने का? मैं मानता हूं कि धर्म का नाम आते ही स्वाभाविक तौर पर कट्‌टरपंथ का भाव भी पैदा हो जाता है लेकिन यह कट्‌टरवादिता होनी चाहिए उस बुराई के लिए जिसकी वजह से हर साल न जाने कितनी महिलाएं शोषित हो जाती हैं, उन देवियों के लिए जो कि कुछ लोगों के लिए आज भी सिर्फ भोग विलास की वस्तु ही मानी जाती हैं. अगर ऐसे कुछ लोग अपनी बेवजह की बातें और विरोध करते रहेंगे तो फिर उनमें और हममें क्या फर्क रह जाएगा?

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