विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Tuesday, January 6, 2009

कब तक ?


कब तक सच को झुत्लाता रहेगा? एक दिन तौ बात माननी ही पड़ेगी। आख़िर कब तक? आख़िर कब तक हम अपने ही घर में जुर्म सहते रहेंगे? कोण होगा इसका जिम्मेदार? बार-बार येही सवाल उठता है की कब तक एक माँ को अपना लाडला खोते रहना होगा? कब तक एक बहिन को अपना भाई खोना होगा, कब तक एक पत्नी को अपना पति खोना होगा, कब तक एक बच्चे को अपना सहारा खोना होगा? कब खुलेंगी पकिस्तान की आंखे?

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