विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Monday, December 6, 2010

...और वो भी चल बसी

सोमवार की सुबह हर अखबार में एक छोटी मगर दर्दनाक खबर छपी थी- पिता की डांट से क्षुब्ध होकर बेटे ने खुद को गोली मारी। यह दर्दनाक खबर अगले दिन उस बेटे की मौत के साथ ही और भी दुखदायी हो गई। बाप अपने इकलौते बेटे की चिता को आग लगाने से पहले गम की आग में खुद जल रहा था कि मंगलवार के अखबारों की सुर्खियों में इसी परिवार की दूसरी मुसीबत की खबर छपी। यह खबर थी, उस बहू की जो कि महज कुछ घंटे ही विधवा जैसी रह पाई। अपने पति की मौत का गम इस बहू को इस कदर हुआ कि उसने भी खुदकुशी कर ली।
देहरादून के रहने वाले एक परिवार में दो दिन पहले ही खुशियों का जश्न मनाया गया था। इस जश्न की वजह थी, बहू की गोद भराई। बेटे ने भी अपनी पत्नी को इस खुशी के बदले में एक एक्टिवा गिफ्ट करने का वादा किया था। बहू भी इस परिवार के वंश को आगे बढ़ाने को लेकर आतुर थी। लेकिन...
यह क्या, बेटा रात को शराब पीकर आया, पिताजी ने शराब न पीने की हिदायत दी। थोड़ी देर के बाद बेटे ने बाथरूम में जाकर खुद को अपने लाइसेंसी पिस्टल से गोली मार ली। गोली खोपड़ी में लगी तो बेटे को आनन फानन में हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। बूढ़ा बाप अपने बुढ़ापे के सहारे को बचाने के लिए भगवान से रातभर आंसू बहाकर प्रार्थना करता रहा, मां को तो जैसे कोख उजडऩे के नाम पर भी बेहोशी सी छा रही थी। आखिरकार बेटे ने मंगलवार की सुबह दुनिया से विदा ले लिया। बेटे का पोस्टमार्टम कराकर अभी उसे घर ला भी नहीं पाए थे कि पति की मौत के विलाप से टूट चुकी पत्नी ने घर की तीसरी मंजिल पर जाकर नीचे छलांग लगा दी। दो पल में ही बहू भी इस दुनिया से विदा हो गई और इसके साथ ही विदा हो गई वह उम्मीदें, जो इस परिवार का एक वारिस लेकर आने वाली थी। इसके साथ ही गुम हो गई वह आस, जो इन मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा बनने वाली थी।
बेटा और बहू अब इस दुनिया में नहीं हैं। बीती जनवरी को दोनों की बड़ी शान से शादी हुई थी, लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि यह युगल अपनी शादीशुदा जिंदगी का एक साल भी पूरा नहीं कर पाएगा। अपनी नादानी कहें या जज्बात, वह तो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपनी मौत के साथ ही उन लोगों को भी अधमरा कर गए, जो कि कभी उन्हें अपनी शान समझते थे। आज इस परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। यह दुख न केवल इस परिवार बल्कि पूरे देहरादून शहर को है। बहू ने खुद को पति के वियोग में मौत के हवाले कर दिया लेकिन उन परिजनों का हाल किसी से देखा नहीं जा रहा है।
हम कई बार बेहद जज्बाती होकर कोई गलत कदम उठा लेते हैं लेकिन हम एक बार भी यह नहीं सोचते कि हमारे बाद हमारे परिवार का क्या होगा? उस मां का क्या होगा, जिसने नौ महीने तक अपनी कोख में रखकर, लाख दुख सहकर हमें जन्म दिया। उस बाप का क्या होगा, जिसने अपने बेटे में अपना भविष्य देखा, जो बेटे को अपने बुढ़ापे का सहारा समझता था। मेरी सभी से अपील है कि वह भले ही कितना भी दुख में हों, चिंता में हों लेकिन जिंदगी को हमेशा पॉजिटीव अंदाज में जिएं. जिंदगी एक बार मिलती है तो दुख और सुख तो इसके दो पहलू हैं। आज अगर सितारे गर्दिश में हैं तो कल एक नई सुबह कई खुशियां भी लेकर आएगी। खुदकुशी करने वालों को कायर कहा जाता है और मुश्किलों का डटकर सामना करने वाले शान से जीते हैं।

1 comment:

DR. ANWER JAMAL said...

आफ़ताब साहब ! आपसे सहमति जताते हुए कहना चाहूँगा कि पीड़ा में भी सुख के मजे लूटे जा सकते हैं बशर्ते कि दिल में ईमान हो और अपनी ज़िम्मेदारियों का अहसास हो। माँ के सुख का तो जनम ही जनम देने की पीड़ा से होता है । देखिए मेरी एक रचना -

ज्ञानमधुशाला
कैसे कोई समझाएगा पीड़ा का सुख होता क्या
गर सुख होता पीड़ा में तो खुद वो रोता क्या

इजाज़त हो तेरी तो हम कर सकते हैं बयाँ
दुख की हक़ीक़त भी और सुख होता क्या

ख़ारिज में हवादिस हैं दाख़िल में अहसास फ़क़त
वर्ना दुख होता क्या है और सुख होता क्या

सोच के पैमाने बदल मय बदल मयख़ाना बदल
ज्ञानमधु पी के देख कि सच्चा सुख होता क्या

भुला दे जो ख़ुदी को हुक्म की ख़ातिर
क्या परवाह उसे दर्द की दुख होता क्या

आशिक़ झेलता है दुख वस्ल के शौक़ में
बाद वस्ल के याद किसे कि दुख होता क्या

पीड़ा सहकर बच्चे को जनम देती है माँ
माँ से पूछो पीड़ा का सुख होता क्या

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ख़ारिज - बाहर, हवादिस - हादसे, दाख़िल में - अंदर
हुक्म - ईशवाणी, ख़ुदी - ख़ुद का वुजूद, वस्ल- मिलन
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