प्याज, वह नाम जो हर आम आदमी की जुबान पर आते ही कड़वा स्वाद खुद पैदा कर देता है। हालांकि कल तक यह प्याज हम सबका चहेता था। हम रेस्टोरेंट में भोजन करने जाते थे तो खाने के थाली के साथ फ्री में खूब सजावट के साथ हमारे सामने पेश किया जाता था। आज हम खाना खाने जाते हैं तो प्याज खाने के लिए डिमांड करनी पड़ती है। लगता है जैसे प्याज अब वीआईपी नंबर सरीखा हो चुका है, जो कि सिर्फ डिमांड पर ही ज्यादा पैसे देकर लिया जाता है। नेताजी हों या दूसरे वीआईपी उनके लिए तो आज भी इसकी वैसी ही वैल्यू है, जैसी पहले थी।
कई दिनों से प्याज की महंगाई की खबर पढऩे और लिखने के बाद आज आखिरकार प्याज खरीदने की बारी आई। घर से प्याज खरीदने के लिए निकलते वक्त दिल धुक-धुक कर रहा था, जैसे सोना खरीदने से पहले करता है कि कहीं फिर दाम न बढ़ गए हों। हालांकि मुझे इस बात का गर्व था कि आज मैं इतना महंगा प्याज खरीदने जा रहा हंू, लेकिन दुख इस बात का था कि मेरे जैसे हजारों आम आदमी इससे दूर हो चुके थे। ऊपर से दाम बढऩे की आशंका ने इस डर को और बढ़ा दिया। मार्केट पहुंचा तो राहत मिली कि प्याज के दाम पांच रुपए कम हो गए थे। लेकिन यह कितने समय रहे होंगे, कहना मुश्किल है। जिस रफ्तार से प्याज के दाम बढ़े हैं, तो लगता है जैसे शताब्दी एक्सप्रेस भी शर्मा जाएगी। अरे, मुझे तो अब ऐसा लगने लगा है कि प्याज कहीं कल वीआईपी न हो जाए। भई, महंगी चीजें तो आम आदमी से दूर ही होती हैं लेकिन वीआईपी के लिए हर तरह से उपलब्ध होती हैं। अभी आप देख सकते हैं कि हम आम आदमी की किचन में प्याज की मात्रा नगण्य सी होगी लेकिन नेताजी या हमारे दूसरे वीआईपीज की किचन में बोरियों के तादाद में प्याज होगा। अब अगर प्याज वीआईपी बन गया तो हम मैंगो पीपुल का क्या होगा?
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