विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Sunday, February 6, 2011

आखिर गुजरात की तारीफ में बुराई ही क्या

मुस्लिम समाज का दुनिया में एक बड़ा संस्थान दारुल उलूम देवबंद आजकल विवादों के घेरे में है। यहां से जारी होने वाले फतवों को दुनियाभर के मुस्लिम मानते हैं। मुस्लिम समाज में इस संस्थान को जो ओहदा यानी इमेज है, वह देशभर में चुनिंदा संस्थानों की ही है। पुराने वाइस चांसलर के इंतकाल के बाद यहां गुजरात के रहने वाले मौलाना वस्तानवी को नया वाइस चांसलर नियुक्त किया गया था। नियुक्ति के कुछ ही दिनों बाद यहां एक बात बवाल की वजह बन गई। मीडिया ने खूब हाइप दी तो मामला देशभर के मुस्लिमों के पास तक पहुंच गया। अब मस्जिदों में नमाज अदा करते हुए दुआएं मांगी जा रही हैं कि अल्लाह इस संस्थान की आबरू और इमेज बनाए रखे। आखिर आज ऐसी क्या बात हो गई जो मुस्लिम समाज के लिए रोशनी बनने वाले इस संस्थान में आशंकाओं के बादलों से अंधेरा छा रहा है।

दरअसल मामला है गुजरात की तरक्की की तारीफ का। हुआ यंू कि नए वाइस चांसलर ने बीस साल पहले के गुजरात और वर्तमान गुजरात की तुलना कर दी। इस तुलना में उन्होंने कहा कि तब के गुजरात की अपेक्षा अब हालात काफी बदल गए हैं। विकास तेजी से हो रहा है, गुजरात बदल रहा है। इसमें उन्होंने कहीं भी नरेंद्र मोदी की तारीफ नहीं की। अब कुछ बवाली किस्म के लोगों ने इस बयान को इस कदर चेंज किया कि मुस्लिम समाज के काफी लोग इसका विरोध जताने पर उतारू हो गए। नए वीसी ने कई बार अपनी सफाई दे दी है कि उन्होंने सिर्फ गुजरात के विकास की तारीफ की है, लेकिन चंद बवाल काटने वाले लोग अपने काम में इस कदर मस्त हैं कि वह यह भूल गए कि यह उनके ही एक बड़े संस्थान की इज्जत का मामला है। आखिर यह संस्थान अकेले नए वीसी का नहीं है, यह संस्थान हैं उन मुस्लिमों का जो कि इससे जारी होने वाले हर फतवे को बेहद तहजीब के साथ पेश आते हैं। यह संस्थान है उन युवाओं का जो देश ही नहीं दुनियाभर से यहां शिक्षा लेने के लिए आते हैं। अब सवाल यह है कि अगर किसी ने गुजरात की तारीफ कर ही दी तो इसमें बुराई क्या है? आखिर इस्लाम ऐसी शिक्षा तो नहीं देता कि हम अपनी आंखों के सामने की सच्चाई को झूठ बोलकर बरगला दें। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। गुजरात के भी ऐसे ही दो पहलू हैं। इनमें एक पहलू तो विकास का है और दूसरा पहलू यहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का है, जिन्हें मुस्लिम समाज में अलग दृष्टि से देखा जाता है। मेरा मानना है कि तारीफ चाहे किसी भी चीज की हो, आंखों के सामने देखकर करने में कोई बुराई नहीं है। दुआ है कि बवाल करने वाले लोगों को भी यह बात समझ में आ जाए, ताकि एक इस्लामी संस्थान की छवि धूमिल होने से बच जाए..|

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