विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Sunday, December 23, 2012

सोच बदलनी होगी

रेप, गैंगरेप, कुकर्म और न जाने कितने घृणित करने वाले शब्द इस साल के आखिरी महीने के अखबारों और न्यूज चैनलों में इतिहास के साथ सिमट गए। एक मासूम के साथ हुई इस अनहोनी, अनहोनी नहीं बर्बरता को सुनकर, पढ़कर और इससे उपजे आंदोलन को देखकर हर उदासीन किस्म के इंसान की भी भावनाएं जागृत होने लगी हैं। हर कोई इंसाफ चाहता है, कानून बदलकर इन आरोपियों को फांसी तक पहुंचते देखना चाहता है। हर किसी को अपनी बहू-बेटियों की फिक्र है। सरकार और कानून अपना काम करता रहेगा लेकिन कुछ अहम बातें हमें अभी से अपनी जिंदगी के कानून की किताब में शामिल करनी होंगी।

-हमारे घर में दो बच्चे होते हैं, एक लड़का और एक लड़की। दोनों में से लड़की जब बड़ी होती है तो उसे पर्देदारी सिखाई जाती है, अनजान के सामने बात करने का सलीका सिखाया जाता है, गैर मर्दों से दूर होने का तरीका सिखाया जाता है लेकिन कभी भी कोई बेटे को तहजीब सिखाने की जुर्रत नहीं करता। उसे यह नहीं बताता कि बाहर सड़क से गुजरने वाली लड़की उसकी बहन के समान है। एक लड़की की फिलिंग्स के बारे में नहीं बताया जाता। हमें यह आज से ही शुरू करना होगा। तब शायद हमारी बहू-बेटियां ज्यादा सुरक्षित हो सकेंगी।

-हम लगातार महिलाओं को आजादी की बात करते हैं। उनकी आजादी के इस ढ़ोंग में ही अपनी जीत समझते हैं लेकिन अभी तक हम उन्हें अपनी सोच से आजाद नहीं कर पाए हैं। उनके भोग की वस्तु समझने की सोच, उन पर बुरी नजर डालने की सोच। हमें सबसे पहले महिलाओं को अपनी इस संकीर्ण सोच भी भी आजाद करना होगा।

-कई महिला मित्रों का तर्क है कि दुनिया में महिला होकर पैदा होना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है। दिल्ली गैंगरेप के बाद से यह बात और भी पुख्ता हो गई है। कभी आप खुद को एक महिला के तौर पर समझकर देखेंगे तो पता चलेगा कि सड़क पर हर दिन महिला के लिए एक चुनौती होती है। ऐसी चुनौती, जिसका सामना शायद मर्द जात एक पल भी न कर पाए। तो उसे यह चुनौती देने वाले भी तो हम ही हैं।

-अंत में एक बार फिर मेरी सभी युवा भाई-बहनों से अपील है कि गैंगरेप के कानून में बदलाव की मांग को लेकर कानून को अपने हाथ में न लें। सरकारी संपत्ति भी हमारी सबकी संपत्ति है। राष्ट्रपति भवन हमारी शान है। यह मायने नहीं रखता कि उसमें मौजूद शख्स कौन है लेकिन यह मायने तो रखता है कि हम कहां पथराव कर रहे हैं। वैसे भी हिंसा किसी बात का हल नहीं है। कृप्या हिंसा को बढ़ावा न दें।

धन्यवाद

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