विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Sunday, December 30, 2012

कैसे रुकेगा बलात्कार


बलात्कार, दामिनी, बदनसीब...न जाने कितने शब्दों की संज्ञा दे रहे हैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले। बड़े-बड़े विद्वानों को स्टूडियो में बैठाकर लंबी-लंबी बहस। कोई उस बहादुर लड़की को चिरैया की उपाधि दे रहा है तो कोई देश को शर्म से सर झुकने की बात चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है। निचोड़ एक है, महिलाओं की सुरक्षा और समाज में उनका मान। इस मान के लिए हालांकि लड़ाई लंबी रही है लेकिन एक छोटी सी बात ही यहां रोड़ा बन जाती है।

बात होती है बाजार की। महिला आज के समय में बाजार की सबसे बड़ी मांग है। उसका जिस्म ही उत्पादों के बेचने का रास्ता तय करता है। बड़े-बड़े कारपोरेट घराने, जिनमें भारतीय भी शामिल हैं, महिलाओं के जिस्म की नुमाइश के आधार पर अपनी बैलेंस शीट तैयार करते हैं। इस नुमाइश में कहीं से भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कम नहीं है। दो मिनट के लिए यहां दामिनी के साथ हुए अत्याचार को बेहद शाब्दिक लहजे में पेश किया जाता है तो अगले ही पल आने वाले ब्रेक में उसी दामिनी के कपड़े उतरते हुए अर्धनग्न हालत में जिस्म की नुमाइश करते हुए दिखाया जाता है। कल रात अचानक न्यूज चैनल देखते हुए यह विचार बरबस ही मन को बेचैन कर गया। जैसे ही चैनल ने ब्रेक की घोषणा की तो अगले दो पलों में एक फर्श का विज्ञापन अर्श तक महिलाओं के जिस्म की नुमाइश करता नजर आया। नुमाइश भी इस कदर कि खुली हुई टांगे दिखाकर एक फर्श को बेहतर साबित करने की होड़। क्या कर रहे हैं हम, क्या दिखा रहे हैं और महिला को क्या सम्मान दे रहे हैं???

इन सवालों को जवाब तलाशने निकलों तो शायद पूरा युग बीत जाएगा। महिला आज भी हमारे समाज ही नहीं बाजार के लिए भी महज एक उत्पाद विक्रेता है। जिसके जिस्म को हम जितना बेहतर तरीके से जनता के सामने पेश कर देंगे, वह उतना ही उनके मन में उतर जाएगा।

सवाल आपके लिए छोड़ रहा हंू, आखिर क्या इस तरह से हम महिलाओं को सम्मान दिला पाएंगे? उनकी लुटती हुई आबरू को समाज का इज्जत वाला लबादा ओढ़ा पाएंगे?

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