आमतौर पर हर दिन कहीं न कहीं से सुनने को मिल जाता है कि फलां आदमी या सेलेब्रिटी के खिलाफ फतवा जारी हो गया है। फतवे को लेकर हमारी जनता में इस कदर कंफ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई है कि हम इसे फरमान समझ बैठते हैं। अगर इस बात की तह तक जाएं तो पता चलता है फतवा महज एक कानूनी सलाह है, फरमान नहीं।
फतवा एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मायना होता है इस्लाम के नजरिए से सलाह। अब जब यहां सलाह शब्द आ जाता है तो जाहिर तौर पर यह बात भी सामने आ जाती है कि सलाह सिर्फ मांगने पर ही दी जाती है। जब तक आप किसी से कोई सलाह मांगेगे नहीं तो कोई क्यों देगा? इस सलाह को देने वाला भी कोई आम शख्स नहीं होता। इसे देने वाले विद्वान को मुफ्ती कहा जाता है। यह वो शख्स होता है, जो कि इस्लाम का बारीकी से अध्ययन करता है।
फतवे को लेकर तरह-तरह की अवधारणाएं बनी हुई हैं या यंू कहें कि इसका नाम दिमाग में आते ही इ्रस्लामिक कट्टरता सामने आ जाती है। इस्लाम को लेकर भी कई तरह की बातें होती हैं। हर धर्म में ऐसे विद्वान होते हैं जो कि धर्म की बारीकी से जानकारी रखते हैं। इस्लाम धर्म में भी यह काम मुफ्ती करते हैं, जो कि केवल मांगने पर ही फतवा देते हैं। फतवे जारी होने को लेकर कई तरह की बातें सामने आई हैं, जैसे फलां के खिलाफ फतवा जारी हुआ। यह जारी होता है लेकिन इसे लागू नहीं कहा जा सकता। इस्लाम की रोशनी में दी जाने वाली इस सलाह को मानना या नहीं मानना हमारे अपने ऊपर निर्भर करता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि फतवे को लेकर कट्टरता का भाव रखना गलत है।
5 comments:
आप तो अच्छा लिखते हैं ...
...और सही भी ।
जानकारी देकर भ्रम दूर करने के लिए ...
शुक्रिया
सनातन है इस्लाम , एक परिभाषा एक है सिद्धांत
ईश्वर एक है तो धर्म भी दो नहीं हैं और न ही सनातन धर्म और इस्लाम में कोई विरोधाभास ही पाया जाता है । जब इनके मौलिक सिद्धांत पर हम नज़र डालते हैं तो यह बात असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो जाती है ।
ईश्वर को अजन्मा अविनाशी और कर्मानुसार आत्मा को फल देने वाला माना गया है । मृत्यु के बाद भी जीव का अस्तित्व माना गया है और यह भी माना गया है कि मनुष्य पुरूषार्थ के बिना कल्याण नहीं पा सकता और पुरूषार्थ है ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के अनुसार भक्ति और कर्म को संपन्न करना जो ऐसा न करे वह पुरूषार्थी नहीं बल्कि अपनी वासनापूर्ति की ख़ातिर भागदौड़ करने वाला एक कुकर्मी और पापी है जो ईश्वर और मानवता का अपराधी है, दण्डनीय है ।
यही मान्यता है सनातन धर्म की और बिल्कुल यही है इस्लाम की ।
अल्लामा इक़बाल जैसे ब्राह्मण ने इस हक़ीक़त का इज़्हार करते हुए कहा है कि
अमल से बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
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