विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Saturday, October 9, 2010

यह है समाज का काला चेहरा?

सुबह को ताजी हवा खाकर फ्रेश होने के बाद ऑफिस जाने की तैयारी कर ही रहा था कि मेरे खास दोस्त का फोन आ गया। कई महीनों से वह अपने कई सालों से चल रहे इंटर कास्ट अफेयर को लेकर परेशान था। उसकी परेशानी मुझसे देखी नहीं जाती थी तो मैं उसे कोर्ट मैरिज करने की सलाह दे डालता था। हालांकि मेरी सलाह गलत नहीं थी लेकिन मुझे यह भी अंदाजा नहीं था कि समाज के लिए यह आज भी उतना ही गलत है। मेरे दोस्त और उसकी प्रेमिका (जो कि अब पत्नी है) के सब्र की जब सारी सीमाएं टूट गई तो उसने खुद ही विवाह बंधन में बंधने का फैसला लिया। तब छोटा सा दिखने वाला यह फैसला कल कितना भारी साबित होने वाला है, इसकी जानकारी न तो मेरे प्रेमी पागल दोस्त को थी और न ही मुझ जैसे समझदार तबके के प्राणी को। शादी की तारीख तय हो गई, दोस्त ने दूसरे दोस्तों से फाइनेंशियल सपोर्ट ली तो सबने उसका साथ दिया। जैसेतैसे चुपचाप शादी भी हो गई, हम खुद ही बाराती बने और खुद ही घराती। लेकिन शादी के अगले दिन ही समाज का सच्चा चेहरा सामने आना शुरू हो गया। शुरुआत हुई मेरे दोस्त के पिताजी के फोन से। बेटे ने डरतेडरते फोन रिसीव क्या किया कि आज तक वह उन पलों को कोसता है। शादी की खुशी तब काफूर हो गई जब बचपन से पालन पोषण करने वाले पिताजी ने दो टूक जवाब दिया। पिताजी ने तो संपत्ति से बेदखल कर दिया लेकिन मुश्किलें कम होने वाली नहीं थी। धीरेधीरे समाज की तोहमतें मेरे दोस्त के हर दिन की शुरुआत करती। आज एक साल हो गया है, मेरा दोस्त आज भी मुझे ही अपना बाप समान मानता है। प्रोफेशनल होने के नाते उसके परिचितों की लंबी फेहरिस्त भी उसे अपनों से बिछड़ने के गम से दूर नहीं कर सकी। अब यह साहसिक परिवार दो से तीन होने जा रहा हैं लेकिन हमारे समाज की सोच आज भी दो टके की नहीं है। अपने दोस्त को हालांकि मैं किसी तरह की इमोशनल कमी महसूस नहीं होने देता लेकिन कब्र के अजाब को मुर्दा ही अच्छी तरह से जान सकता है। आए दिन कोई न कोई नई कहानी सामने आती है. ऐसी कहानियां जो कि हमारे समाज के अत्याधुनिक सोच को बयां करती हैं. रिश्तों की परिभाषाएं बदल रही हैं, मर्यादाएं भी पहले से काफी कमजोर हो चुकी हैं. लेकिन कहीं न कहीं आज भी हमारे समाज का रूढि़वादी चेहरा दिखाई दे रहा है। इंटर कास्ट मैरीज तो चोरी और मर्डर से भी बुरा जुर्म माना जाता है। मैं अपने दोस्त के लिए दुआएं करता हूं, आप भी उसके परिवार को उससे मिलाने के लिए दुआएं ही कर सकते हैं।

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