विचार कभी सामान्य नहीं होते
विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....
आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत
Wednesday, October 13, 2010
ये कहां जा रहे हम???
पिछले दिनों की बात है, मुझे पैरेंटिंग पर हुए एक सेमिनार में भागीदारी करने का मौका मिला। पैरेंटिंग यानी बच्चों की परवरिश, आज के युग के युगलों की सबसे बड़ी समस्या। इस समस्या को सुनने और इसके निराकरण के लिए स्टेज पर बाकायदा कई विशेषज्ञ भी बुलाए गए। सेमिनार शुरू हुआ तो इसके बाद कई घंटे तक लगातार चलता रहा। मां अपनी बेटी के बदलते व्यवहार से नाराज थी तो पापा बेटे की आजादी से। एक मां ने बताया कि उनकी बेटी महज सात साल की है और अपने ब्वायफ्रेंड के साथ घूमने जाने की जिद करती है। मां के आंसू बता रहे थे कि वह अपनी बेटी में किस कदर अपना भविष्य देखती होंगी। खैर विशेषज्ञों ने अपनी महत्वपूर्ण राय दी। अब जो सीन सामने आया, उसने तो मेरे भी रोंगटे खड़े कर दिए। एक आधुनिकता का लबादा ओढ़े हुए मां जबर्दस्ती अपनी मजबूरी को अपनी बनावट के नीचे छिपाने की कोशिश कर रही थी। काफी देर तक मातापिता की अपनी औलाद को रोना रोने के बाद आखिरकार वह महिला भी इमोशनल हो ही गई। जब महिला इमोशनल हो जाती है तो तब वह न चाहते हुए भी बोलती चली जाती है। ऐसा ही हुआ उस महिला के साथ भी। महिला ने बताया कि वह कई सालों से दुबई में सैटल्ड है। इस बीच उसकी बेटी दस साल की हो गई। बेटी स्कूल में जाने लगी। बेटी का व्यवहार लगातार बदलता चला गया। इतना बदल गया कि अब बेटी, मां के बजाए अपने मेल फ्रेंड्स से मिलना और बातें करना ज्यादा पसंद करने लगी। मां ने काफी कोशिश की लेकिन कच्ची उमर में किसी को सही सलाह भी गलत ही नजर आती है। आखिरकार उस मां ने खुद को पश्चिमी संस्कृति के मुताबिक ढ़ालना शुरू किया। मां ने एक लैपटॉप खरीदकर सभी कम्यूनिटी साइट्स पर अपनी बेटी को अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल किया। इसके बाद उसके प्रोफाइल पर उसके सभी फ्रेंड्स को भी अपना मित्र बनाया। अपनी बेटी को गलत रास्ते से बचाने के लिए उसके मित्रों से लंबीलंबी बातें की। बेटी तो यही चाहती थी। अपने संस्कार भूल चुकी बेटी इस कदर हाईटेक हो गई कि वह अपने मां और बाप के सम्मान को भी भूला बैठी। अब इस मां का दर्द यह था कि वह अपनी बेटी के साथ दो मिनट भी बैठकर बात नहीं कर सकती। बेटी अपने कमरे में बैठकर दोस्तों से चैटिंग करती रहती है और वह खाने का बुलावा भी अपनी बेटी को इंटरनेट के माध्यम से ही देती है, तब बेटी कमरे में खाना भेजने की इजाजत देती है तो मां उसके पास खाना पहुंचा देती है। इतनी कम उम्र में बेटी की इतनी दूरी उसे कहां लेकर जाएगी यह तो सोचने वाली बात है लेकिन भारतीय संस्कृति में पैदा हुए लोगों का इस कदर पश्चिमीकरण मैंने पहली बार देखा और सुना था। वास्तव में हम अपनी संस्कृति से लगातार दूर हटते जा रहे हैं। आधुनिकता के इस युग में अब चिंता इस बात की है कि हमारी नई पीढि़ इस हाईटेक और वेस्टर्न कल्चर के चक्कर में कहां जाकर रुकेगी? आज बेटी पापा की बात नहीं सुनती तो कल उसका भविष्य क्या होगा? बेटा, मम्मी को लगातार इग्नोर करता है तो कोई कुछ नहीं कर पाता। आपके लिए भी यह सवाल छोड़ रहा हूं कि आखिर हम कहां जा रहे हैं? कृप्या इस बात को गंभीरतापूर्वक सोचने के बाद ही इस पर अपना कमेंट लिखें.
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