पांच साल पहले की बात है जब घर से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के लिए निकला था। तब घर छूटने के साथ ही मेरी हमजोली साइकिल भी मुझसे दूर हो गई थी। दिल्ली की भागदौड़ भरी जिंदगी में साइकिल नसीब से ऐसी दूर हुई कि आज तक मैं साइकिल की सवारी से दूर ही हूं। वक्त बीतता गया, साइकिल का बैलेंस और पैडल भी दिमाग से भूलता गया। आज अचानक साइकिल चलाने का मौका मिला तो मैं अपने इस अनुभव को शब्दों में बयां नहीं कर पा रहा हूं। आज जब पर्यावरणप्रेमी शर्मा जी साइकिल से मेरे पास आए तो मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैं झट से साइकिल पर बैठ गया। इसके बाद पैडल मारा तो बैलेंस बनाना मुश्किल था। वैसे भी ज्यादातर समय बाइक पर गुजारने के बाद साइकिल चलाना अजीब सा अनुभव था। दिल कर रहा था कि मैं साइकिल से ही कहीं उड़ जाऊं। वहां, जहां मैं और मेरी आजादी हों, जहां मुझे कोई टोकने वाला न हो, जहां हर तरफ शांति हो, जहां सड़कों के लंबेलंबे जाम न हों। साइकिल के इस अनुभव ने एक पल में ही मेरी जिंदगी को पांच साल पीछे भेज दिया। तब खेत में साइकिल से जाने पर जो मजा आता था, वो शहर की इन खचाखच भरी सड़कों पर कहां। आज हम वक्त की रफ्तार से कंधे से कंधा मिलाकर चलने की होड़ में इस साइकिल को भले ही भूल गए हों लेकिन आज भी कई लोग इसे ही शान की सवारी समझते हैं। हम लगातार पर्यावरण बचाने की बातें करते हैं, पर्यावरण जागरुकता रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना करने के लिए कार से आते हैं, सोचने वाली बात तो यह है कि घर से महज कुछ पग की दूरी पर बने ऑफिस में बाइक या कार से जाना हम अपनी शान समझते हैं। बेचारी साइकिल ने खुद को जमाने के मुताबिक बदलने के लिए भले ही अपने अंदर गियर डाल लिए हों लेकिन दिखावे के इस जमाने में यह इंसानो से दूर ही है।
1 comment:
Gud one....
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