विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Thursday, October 21, 2010

आम आदमी हो तो मरो

बात जरा पुरानी है लेकिन मेरे जेहन की यादों में आज भी ताजा है। हो भी क्यों न, आखिर मैंने अपनी आंखों के सामने वीआईपी का रौब और आम आदमी पर इसकी मार जो देखी थी। तब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था। एक दिन सड़क से गुजर रहा था कि पीछे से वीआईपी काफिले का हूटर सुनाई दिया। मैं यह तो नहीं जानता कि इस फ्लीट में कौन जनता के वोटों से जीता वीआईपी नेता था लेकिन जो मैंने देखा, उससे मैं बहुत आहत हुआ। दरअसल इस काफिले की आवाज धीरेधीरे साइकिल चलाने वाले उस मजबूर बूढ़े कानों को सुनाई नहीं दी। बस उसकी खता ये थी कि उसके कान इसे महसूस नहीं कर पाए। नतीजा काफिला उसकी साइकिल के पास पहुंचा। काफिले में सबसे आगे चल रही पुलिस की गाड़ी में बैठे पुलिस भी वीआईपी की खातिरदारी में आम आदमी का दर्द भूल गए। कार के साइकिल के पास पहुंचते ही कार में से एक राइफल बाहर निकली। मैं पूरा नजारा अपनी आंखों से देख रहा था। राइफल निकली और अगले ही पल वापस अंदर चली गई लेकिन यह राइफल उस बूढ़े और उसकी साइकिल को सड़क से पांच फिट दूर गिरा गई। इस वीआईपी रौब ने मुझे अंदर तक हिला दिया। काश मेरे वश में होता तो मैं उस वीआईपी को उससे माफी मांगने के लिए जरूर रोक लेता। काफिला चला गया लेकिन माजूर को दे गया वो जख्म जो शायद वह कभी नहीं भूल सकेगा। खैर मैंने उसे सहारा देकर उठाया तो वह चला गया। मैं अक्सर देखा करता हूं कि कोई भी वीआईपी काफिला जाता है तो पूरा सिस्टम रोक दिया जाता है। आखिर जनता के वोट से वीआईपी बनने वाले यह लोग कब इस जनता का दर्द समझेंगे। अरे इनसे अच्छे तो वो विदेशी हैं, जहां वीआईपी के जाने की कानोंकान खबर भी नहीं होती। अब आपके दिमाग में एक सवाल आना जायज है, आखिर वीआईपी है तो सुरक्षा की जिम्मेदारी भी बनती है। अरे जब आप ट्रेफिक रोक देंगे तो हर किसी को पता चल जाएगा कि यहां से कौन गुजरने वाला है। अगर सबकुछ सामान्य तरीके से चलाएंगे तो मेरे ख्याल से कम दिक्कतें होंगी। यह बात मुझे आज इसलिए ज्यादा याद आ रही है, क्योंकि आज मेरी बाइक एक घंटे तक वीआईपी के जाम में फंसी रही। खैर हमारी तो कट जाएगी, लेकिन चिंता इस बात की है कि हमारा सिस्टम कैसे सुधरेगा?

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