विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Monday, October 11, 2010

रौब का है जमाना

जमाना बदल रहा है। अब कोई मीडिया में काम करने वाला हो या किसी सरकारी विभाग में। अपनी यह पहचान वह दुनिया के सामने रखने में बिल्कुल भी हिमाकत नहीं करता। इसकी बेहतरीन नजीर है, दो साल पहले तक पान की दुकान करने वाले एक शख्स। देहरादून में रहने वाले इस शख्स का बेटा किसी लोकल स्तर के अखबार से जुड़ा था। बाप का झगड़ा हुआ तो बेटा तपाक से आ धमकता था। झगड़ा खत्म। बाप को यह बात जम गई तो उन्होंने झट से अपनी पान की दुकान पर ताला लटका दिया। अब पिताजी भी एक लोकल अखबार के संपादक हैं। तरक्की का सिलसिला जारी है। महाशय ने अब एक मारुति भी ले ली है और उस पर बड़े शब्दों में संपादक का बोर्ड भी लटका दिया है। श्रीमान अब शहर में बाइक लेकर निकलते हैं तो हेलमेट की जरूरत नहीं समझते। बेचारी ट्रेफिक पुलिस भी संपादक होने के नाते विवाद से बचना ही पसंद करती है। यह तो हुआ एक सामान्य सी पान की दुकान करने वाले का मीडिया रौब, लेकिन यह रौब सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि दूसरी जगहों पर खूब देखा जाता है। पापा पुलिस में हैं तो बेटा बाइक पर बड़े अक्षरों में पुलिस लिखवाकर शहर में बिना हेलमेट के जमकर बाइक भांजता है। स्कूल का टीचर भी अब अपनी गाड़ी पर एजूकेशन डिपार्टमेंट लिखवाता है तो इंकम टैक्स ऑफिस में काम करने वाला इंप्लाई भी आयकर विभाग जरूर लिखवाता है। यहां तक तो सही था लेकिन रौब के जमाने की रफ्तार अपने सुरूर पर है। इसकी बानगी देखने को तब मिली जब एक मीडियाकर्मी का रिश्ते का साला भी अपनी कार पर प्रेस लिखवाकर चल पड़ा। कई सालों तक इसका इतना फायदा उठाया कि हम मीडियाकर्मी इसके बारे में सोच भी नहीं सकते। हद तो तब हो गई जब नगर निगम में कांट्रेक्ट पर काम कर रहे एक सफाई कर्मचारी ने अपनी बाइक पर नगर निगम बड़ेबड़े अक्षरों में लिखवाकर शहर में खूब मस्ती की। जब जनाब पकड़े गए तो दूध का दूध और पानी का पानी होने की वजह से वह पानीपानी हो गए। अब हम आपको बताते हैं कि यह रौब कई बार कितना भारी पड़ जाता है। हाल के दिनों में देहरादून में एक विधायक जी के साथ पुलिस ने मारपीट की। दरअसल मामला यूं था कि विधायक जी अपनी सत्ता की धौंस दिखा रहे थे। इस पर पुलिस भी अपनी हनक दिखाने लगी। बात बढ़ गई तो 'आन' पर आन पड़ी। फिर क्या था, पुलिस ने भी ले लिया विधायक जी को खोपचे में। इसके बाद भले ही कितना भी बवाल हुआ हो लेकिन यह सब मामला था रौब् का ही। यह सब उदाहरण बताते हैं कि अब हम चुपचाप रहने के बजाए अपने प्रोफेशनल का गीत पूरी जनता के सामने गाना चाहते हैं ताकि कल कोई अगर पकड़ भी ले तो वह समझ जाए कि उस पर हाथ डालना कितना मुश्किलों भरा हो सकता है।

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