विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Sunday, October 17, 2010

महिला है, बचके रहना रे बाबा


हम आज भी महिलाओं को दयनीय दृष्टि से देखते हैं। मैं खुद शोषित महिलाओं के पक्ष में रहता हूं। समाज की दयादृष्टि का पात्र यह महिलाएं दरअसल कानूनी रूप से लेकर हर तरह से मजबूत हैं। आपका एक कदम आपको कहां ले जाएगा कहना मुश्किल है लेकिन सुपर पावर महिला आपको कब और कहां, कैसे हालात में पहुंचा दे, यह कभी किसी ने नहीं सोचा है। हमारे संविधान ने महिलाओं को वास्तव में एक अलग पावर दी है। आज मैं जो वाकया लिख रहा हूं, अब से महज कुछ घंटे पहले ही मैं इसका शिकार हुआ हूं। दरअसल रविवार को शहर के एक स्कूल में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का कार्यक्रम था। मेरी ड्‌यूटी डॉ. कलाम की कवरेज के लिए लगाई गई थी। कार्यक्रम में मसक्कली गीत से मशहूर हुए गायक मोहित चौहान भी थे। यंग जेनरेशन को रिप्रजेंट करने वाले हमारे न्यूज पेपर के लिए यह जरूरी था कि हम इस युवा गायक के दिल की बातें जाने। सो मैं पहुंच गया इस हस्ती के पास। मौके पर कई छात्राएं भी ऑटोग्राफ लेने के लिए आ खड़े हुए। मेरे मीडियाकर्मी साथी भी मौके पर मौजूद थे। इसी बीच एक छोटी से बच्ची मेरे पीछे खड़ी थी। उनके ठीक पीछे एक सभ्य सी दिखने वाली महिला भी खड़ी थी जो कि मशहूर गायक की झलक न मिलने की वजह से फ्रस्टेट नजर आ रही थी। इस बीच जब उस महिला को मैं राह की बाधा नजर आया तो उन्होंने जो तरीका मुझे हटाने का निकाला, मैं उससे आहत हूं। उन्होंने मुझ पर सीधे उस बच्ची को छेड़ने का आरोप लगा दिया। मैं बेचारा मर्द अब उस महिला को क्या जवाब दूं। हिंसात्मक रुख अपनाऊं तो मुश्किल और डांट दूं तो मुश्किल। बच्ची मुझे अंकल कहकर पुकार रही थी, लेकिन इस महिला ने एक पल में मेरे चरित्र पर सवाल खड़ा कर दिया। हालांकि मैंने अपनी भड़ास निकालने के लिए महिला को मुंहतोड़ जवाब दिया लेकिन मेरा जमीर अभी भी इसे पर्याप्त नहीं मान रहा है। मैं अगर महिला के साथ ज्यादा सख्ताई करता तो वह निश्चित तौर पर मेरे साथ कुछ और बुरा कर सकती थी। मैं बेचारा वहां किसेकिसे समझाता लेकिन उस महिला का यह रवैया मुझे ताउम्र पसंद रहेगी।

2 comments:

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति .

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .

अजित गुप्ता का कोना said...

महिला ने यह पैंतरे भी पुरुष से ही सीखे हैं। जब एक महिला बेबस होती है तो उसे लूटने वाले उसके परिवार में ही कई निकल आते हैं और जब वहीं महिला तनकर खड़ी हो जाती है तो उसे चरित्रहीन,डायन और न जाने क्‍या क्‍या नाम से पुकारा जाता है। इसलिए समाज जब तक महिला और पुरुष का वर्गीकरण करके विवेचना करेगा तब तक ऐसा ही होता रहेगा। यह सामाजिक पतन है और इसे सम्‍पूर्ण समाज को ही हल करना चाहिए।