विचार कभी सामान्य नहीं होते

विचार तो मन में आते हैं लेकिन हम उन्हें सही दिशा नहीं दे पाते। अपनी आंखों के सामने हर पल कुछ नया देखते हैं लेकिन उसके बारे में सोच नहीं पाते, अगर सोचते हैं तो शब्दों में ढ़ालना मुश्किल है। शब्दों में ढ़ाल भी दें तो उसे मंच देना और भी मुश्किल है। यहां कुछ ऐसे ही विचार जो जरा हटकर हैं, जो देखने में सामान्य हैं लेकिन उनमें एक गहराई छिपी होती है। ऐसे पल जिन पर कई बार हमारी नजर ही नहीं जाती। अपने दिमाग में हर पल आने वाले ऐसे भिन्न विचारों को लेकर पेश है मेरा और आपका यह ब्लॉग....

आपका आकांक्षी....
आफताब अजमत



Saturday, October 30, 2010

इस राह में कोई रोड़ा नहीं बन सकता

पिछले दिनों की बात है। मैं ऑफिस से काम निपटाने के बाद घर पहुंचा। खाना खाकर अभी आराम की मुद्रा में आया ही था कि फोन की घंटी बज उठी। इस मुद्रा में जाने के समय पर अगर फोन बाधा उत्पन्न करे तो बहुत किलस होती है। खैर मैंने फोन उठाया तो रोने की आवाजें आने लगी। फोन पर आने वाली आवाज मर्दाना थी लेकिन उस आवाज में एक मजबूरी झलक रही थी, कुछ टूटने का अहसास हो रहा था। मैंने हैलो किया तो वह विनय का फोन था। विनय, जो कि एक बेहद चुस्त और जोश से भरा हुआ दिखने वाला युवक। काम में माहिर, किसी कंपनी में बतौर एक्जीक्यूटिव तैनात। सुबह जोश के साथ तो शाम आत्मसंतुष्टि के साथ होती थी। आज ऐसा क्या हुआ कि विनय माजूरी की हालत में पहुंच गया। उसकी गिरती आवाज को अपनी आवाज से सहारा देते हुए मैंने विनय से रोने की वजह पूछी तो वह फफकफफक कर रो पड़ा। विनय ने बताया कि वह एक दूसरी कम्यूनिटी की लड़की से प्रेम करने लगा। प्रेम भी इस कदर परवान चढ़ गया कि वह उसके लिए सबकुछ छोड़ने को तैयार हो गया। ऐसे प्रेमियों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनते हैं मांबाप। यहां भी ऐसा ही हुआ। विनय के मांबाप ने उसे रोकने की लाख कोशिश की लेकिन समाज की नजरों में कांटों से भरे इस रास्ते पर चलने में उसे जो मजा आ रहा था, उसे एक प्रेमी ही महसूस कर सकता है। मातापिता के बढ़ते विरोध के साथ ही विनय के प्रेम को एक अलग मजबूती मिलती जा रही थी। जब विनय बगावत पर उतर आया तो उसके परिजनों ने एक ऐसा रास्ता अख्तियार किया, जो आज के परिपेक्ष्य में थोड़ा आलोचना भरा हो सकता है। विनय के पिता ने उसे कमरे में बंद कर दिया, विनय ने रोते हुए बताया कि वह पिछले कई दिनों से इस कमरे में बंद होकर रह गया है। मैंने विनय के आंसुओं को रोकने की कोशिश की तो उसने अपनी प्रार्थना रोते हुए मेरे सामने रख दी। विनय चाहता था कि मैं मीडियाकर्मी होने के नाते उसका कोर्ट मैरिज करा दूं और उसे यहां से चलता कर दूं। विनय की नजरों में आसान सा दिखने वाला यह काम इतना आसान नहीं था। पहली बात तो यह कि कमरे से बाहर निकलना मुश्किल, बाहर निकल भी गया तो दिल्ली भेजी जा चुकी प्रेमिका से मिलना मुश्किल, मिल भी गया तो बैंक अकाउंट में एक भी पैसा नहीं। ऐसे में विनय का यह प्यार और भी मुश्किल था। मैंने विनय को थोड़ा सब्र रखने की सलाह दी तो उसे मेरी बातों में नाउम्मीदी नजर आई। मैंने लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। दो दिन बाद उसके निवास वाले क्षेत्र के थाने में एक एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें लिखा था कि उनका बेटा गायब हो गया है। कल तक उसे कमरे में बंद करने वाले मांबाप को आज अपने बेटे के खोने पर बेहद अफसोस हो रहा था। विनय जा चुका था और अपने पीछे छोड़ गया था कुछ दर्द कुछ रंज।

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